होती है इन रिश्तों से किरदारों की बारिशें
कि इक मैं हूँ इक तुम हो... हमारी... तवील राहों के किस्से।
इक मैं हूँ.
भरू रंग कौन सा आँगन में...पिया बोल दे
भीगू आज मैं किस सावन में...पिया बोल दे
होगी जन्म-जन्मांतर की बातें... फिर कभी,
आज भरूँ मांग किस दर्पण से... पिया बोल दे।
इक तुम हो..
लाऊँ वो लफ्ज़ कहाँ से जो सिर्फ तुझें सुनाई दें,
सजाऊँ वो चाँद कहाँ पर जो सिर्फ तुझें दिखाई दें,
बताएँ क्या इन रिश्तों के तासीर का आलम तुम्हें,
बुनू वो आसमां कहाँ पर जो सिर्फ तुझें नुमाई दें।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'
bhaav poorn panktiyan
ReplyDeleteशुभेच्छा संपन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteसुन्दर भावपूर्ण सृजन
ReplyDeleteशुभेच्छा संपन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
ReplyDeleteहृदय को छूने वाला उत्कृष्ट भावपूर्ण सृजन। बार-बार पढ़ने योग्य रचना के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनायें!
ReplyDeleteशुभेच्छा संपन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Delete'एक मैं और एक तुम' जब एक होकर रहे तो फिर न किसी रंग की और नहीं आसमाँ की जरुरत नहीं महसूस होती है। बिना बोले ही सब सुनाई व बिना देखे ही सबकुछ दिखाई देना लगता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दो दिलों के लम्बी अलग धड़कनों को एक करने की कवायद
शुभेच्छा संपन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteदिल की गहराइयों से निकला संवाद ... कशिश जो खींच लाती है साथ ...
ReplyDeleteक्या ज़रूरी है फिर कुछ भी ...
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ! अति सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteहोगी जन्म-जन्मांतर की बातें... फिर कभी,
ReplyDeleteआज भरूँ मांग किस दर्पण से... पिया बोल
प्रेम की पराकाष्ठा...
बहुत ही लाजवाब
वाह!!!
बहुत सुंदर भावों से युक्त सराहनीय रचना ।
ReplyDeleteसुंदर रचना..
ReplyDeleteसादर...
सिर्फ पहुँचें मेरी हर बात बस तुम तक .....
ReplyDeleteबेहतरीन नज़्म
वाह ! बहुत ही सुन्दर हृदय स्पर्शी सृजन पम्मी जी,🙏
ReplyDeleteवाह! बहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर