(इशरार करती माहिया...क्या करूँ होली आ रही है न तो थोड़ी तुनकमिजाजी बनतीं हैं..✍️)
जमाना बहाना है,
भीगी होली में
अब होश उड़ाना है।
रंगों के किस्से हैं,
मुस्कराते गुंचे में
फसानों के हिस्से हैं।
दीदार कराया करों
दुपट्टे के ओटों
छत पर आया करों
छत पर तो आ जाऊँ,
अजब सी चुभन है
दिल में न छुपा पाऊँ।
छलकी अब क्यूँ आँखें,
दिल्लगी थी थोड़ी
वफ़ा जफ़ा निभा लेगें।
छोड़ों जाने भी दो माहिया
रंगरेज बना न करों
हमख्याल बन जाओं माहिया।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...