सांस लेने की रिवायतें निभा रहें बहुत
आईने की भी शिकायतें जता रहें बहुत
याद ही नहीं रहा कब साये सिमट गई
कनी भर इश्क,मन भर आँसू से छतें बना रहें बहुत
ख़्वाहिशों की नुमू कब ठहरतीं है
आइनों को बगावतें सिखा रहें बहुत
सदाएँ मेरी फ़लक से टकराती रही
मश्क कर अब निस्बतें बढा रहें बहुत
रख कर ताखे पर किस्मत की पोटली
मह की शोख शरारतें चुरा रहें बहुत
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
नुमू...बढनाgrowth मश्क..अभ्यास,निस्बतें..संबंध