नादान बन अब प्रश्न पे
इल्जाम तराशी न कर,
इल्जाम तराशी न कर,
ये नहीं फरेब मेरा..
लकीरें पीटना ही
सबब बना ..
क्या देश का मेरा?
घोटाले, घटनाएं तो हर बार
फिर ये कैसी चीख पुकार..
तलाश रहे..
अब भ्रष्टाचार में शिष्टाचार,
न कर प्रश्न जम्हूरियत पर
सब है कुर्सी के आस - पास ,
हो दौर किसी का भी
रहबर -ए-कौम तो थे आप,
कर रहे है हम गुजर,
लकीरें पीटना ही
सबब बना ..
क्या देश का मेरा?
घोटाले, घटनाएं तो हर बार
फिर ये कैसी चीख पुकार..
तलाश रहे..
अब भ्रष्टाचार में शिष्टाचार,
न कर प्रश्न जम्हूरियत पर
सब है कुर्सी के आस - पास ,
हो दौर किसी का भी
रहबर -ए-कौम तो थे आप,
कर रहे है हम गुजर,
बचे खुचे नम निवाले से,
घटा क्या बढ़ा क्या
इक़्तेदार के ख़जाने में बस
थोड़ी सी कमी ही पड़ी ..,
इक़्तेदार के ख़जाने में बस
थोड़ी सी कमी ही पड़ी ..,
वो भी आपस में मिल बाँट लेंगे
मुजरिम को खाक सजा देगें,
नवरोज़ सी न कोई बात होगी
एक बार फिर
हमी से हमारा ले कर्ज चुका देगें..
हमी से हमारा ले कर्ज चुका देगें..
कर्ज चुका देंगे।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
इक़्तेदार -अर्थ:पावर, कार्यालय, प्राधिकरण :
रहबर- मार्गदर्शक : जम्हूरियत-लोकतंत्र
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
इक़्तेदार -अर्थ:पावर, कार्यालय, प्राधिकरण :
रहबर- मार्गदर्शक : जम्हूरियत-लोकतंत्र
एक-एक शब्द बहुत कुछ कह रहा है । क्या कहे ...
ReplyDeleteआभार।
Deleteइक़्तेदार के ख़जाने में बस
ReplyDeleteथोड़ी सी कमी ही पड़ी ..,
वो भी आपस में मिल बाँट लेंगे
मुजरिम को खाक सजा देगें,
बहुत ही सटीक सार्थक सृजन
चार दिन का हल्ला-गुल्ला, सहानुभूति समानुभूति सिर्फ दिखावा
और कुछ भी नहीं...
बेहतरीन सृजन।
विचारपूर्ण रचना.
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद।
Deleteलोकतंत्र राजतंत्र में बदल चुका है.. कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला..
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुति
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद आ०.
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteआभार।
Deleteन कर प्रश्न जम्हूरियत पर
ReplyDeleteसब है कुर्सी के आस - पास ,.. वाह!
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद आ०.
Deleteधन्यवाद।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-१०-२०२०) को 'स्नेह-रूपी जल' (चर्चा अंक- ३८६४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
जी,धन्यवाद
Deleteबहुत सटीक पम्मी जी सामायिक परिस्थितियों पर चिंतन देती बहुत ही शानदार अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसच का दर्पण दिखाती सुंदर रचना।
जी,धन्यवाद
Deleteचिंतन परक भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआभार
Deleteआभार
ReplyDeleteवाह !बहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteये लोकतंत्र है जिसमें लोक तो गायब रहता है बस तंत्र छाया रहता है हर जगह
ReplyDeleteहमीं से हमारा ले कर्ज चुका देंगे। वाह क्या बात है।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 17 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ही गम्भीर प्रश्नों को टटोलती सार्थक रचना।
ReplyDeleteयही होता आया है और यही होता रहेगा । कहने को कर्ज माफी , फ्री में पानी बिजली सब किसके रहम ओ करम पर ? जो कर देते हैं उन पर ही न ।
ReplyDeleteसटीक लिखा है