Oct 1, 2020

ये नहीं फरेब मेरा...














नादान बन अब प्रश्न पे
इल्जाम तराशी न कर,

ये नहीं फरेब मेरा..
लकीरें पीटना ही
सबब बना ..
क्या देश का मेरा?
घोटाले, घटनाएं तो हर बार
फिर ये कैसी चीख पुकार..
 तलाश रहे..
अब भ्रष्टाचार में शिष्टाचार,
न कर प्रश्न जम्हूरियत पर 
सब है कुर्सी के आस - पास ,
हो दौर किसी का भी 
रहबर -ए-कौम तो थे आप,
कर रहे है हम गुजर,
बचे खुचे नम निवाले से,
घटा क्या बढ़ा क्या
इक़्तेदार के ख़जाने में बस
थोड़ी सी कमी ही पड़ी ..,
वो भी आपस में मिल बाँट लेंगे
मुजरिम को खाक सजा देगें,
नवरोज़ सी न कोई बात होगी
एक बार फिर
हमी से हमारा ले कर्ज चुका देगें..
कर्ज चुका देंगे।
                    पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

 इक़्तेदार -अर्थ:पावर, कार्यालय, प्राधिकरण :
रहबर- मार्गदर्शक : जम्हूरियत-लोकतंत्र

26 comments:

  1. एक-एक शब्द बहुत कुछ कह रहा है । क्या कहे ...

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  2. इक़्तेदार के ख़जाने में बस
    थोड़ी सी कमी ही पड़ी ..,
    वो भी आपस में मिल बाँट लेंगे
    मुजरिम को खाक सजा देगें,
    बहुत ही सटीक सार्थक सृजन
    चार दिन का हल्ला-गुल्ला, सहानुभूति समानुभूति सिर्फ दिखावा
    और कुछ भी नहीं...
    बेहतरीन सृजन।

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  3. Replies
    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद।

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  4. लोकतंत्र राजतंत्र में बदल चुका है.. कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला..
    सराहनीय प्रस्तुति

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद आ०.

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  5. न कर प्रश्न जम्हूरियत पर
    सब है कुर्सी के आस - पास ,.. वाह!

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद आ०.

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  6. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-१०-२०२०) को 'स्नेह-रूपी जल' (चर्चा अंक- ३८६४) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  7. बहुत सटीक पम्मी जी सामायिक परिस्थितियों पर चिंतन देती बहुत ही शानदार अभिव्यक्ति।
    सच का दर्पण दिखाती सुंदर रचना।

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  8. चिंतन परक भावाभिव्यक्ति ।

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  9. वाह !बहुत सुंदर !

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  10. ये लोकतंत्र है जिसमें लोक तो गायब रहता है बस तंत्र छाया रहता है हर जगह

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  11. हमीं से हमारा ले कर्ज चुका देंगे। वाह क्या बात है।

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  12. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 17 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  13. बहुत ही गम्भीर प्रश्नों को टटोलती सार्थक रचना।

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  14. यही होता आया है और यही होता रहेगा । कहने को कर्ज माफी , फ्री में पानी बिजली सब किसके रहम ओ करम पर ? जो कर देते हैं उन पर ही न ।
    सटीक लिखा है

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