चित्राधारित सृजन
मौन सी अभिव्यजंना
कागज पर बिखर रही
मुदित मन की स्पंदना
आतुर हो निखर रही
खिल रहें रंग केसरी
विहग गान नभ साजी
पुलक रहे चित चितवन
व्यंजना पर अखर रही
मौन सी अभिव्यंजना
कागज पर बिखर रही
नव नूतन भाव भ्रमित
सुर संगीत भूल रही
नव भोर की आश से
स्वर्णी तारे गुथ रही
खिल रही निलांजना
धुंध ऊर्मिमुखर रही
मौन सी अभिव्यंजना
कागज पर बिखर रही
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’...✍️