Apr 15, 2020

पैमाने आरजूओं के...




चित्रधारित लेखन

इन आँखों की हया क्या कहने
पैमाने आरजूओं के दहक रहे

पूरी हो न सकी हसरतों की बातें
अरमान दिल के भटक रहे

संभलते रहे जीने की चाहत में
पर कई किरदार सिसक रहे

सजा रही अपनी पहलुओं में सितारे
‘पूजिता’ के पायल खनक रहे।
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’ पूजिता..✍

11 comments:

  1. खूबसूरत शब्द |shbdankn ॥

    ReplyDelete
  2. जीवन फिर भी सँभालते रहना ही है ...
    अच्छी रचना ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुभेच्छा संपन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।

      Delete
  3. वाह ! क्या बात है ! लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीया ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुभेच्छा संपन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।

      Delete
  4. संभलते रहे जीने की चाहत में
    पर कई किरदार सिसक रहे..... लाज़वाब।

    ReplyDelete
  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-06-2020) को 'बिगड़ गया अनुपात' (चर्चा अंक 3726) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव


    ReplyDelete
  6. वाह! पम्मी दी बेहतरीन सृजन.

    ReplyDelete
  7. बहुत खूबसूरत प्रस्तुत‍ि पम्मी जी, क‍ि...

    संभलते रहे जीने की चाहत में
    पर कई किरदार सिसक रहे...गजब

    ReplyDelete

Women's rights

 Grihshobha is the only woman's magazine with a pan-India presence covering all the topics..गृहशोभा(अप्रैल द्वितीय)  ( article on women...