अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
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लेखकीय रूप
अच्छा लगता है जब विशिष्ट समकालीन संदर्भ और तुर्शी के साथ जीवन,समाज के पहलूओं को उजागर करतीं लेख छपती है। इस सफ़र का हिस्सा आप भी बनिए,प...

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तुम चुप थीं उस दिन.. पर वो आँखों में क्या था...? जो तनहा, नहीं सरगोशियाँ थीं, कई मंजरो की, तमाम गुजरे, पलों के...
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कहने को तो ये जीवन कितना सादा है, कितना सहज, कितना खूबसूरत असबाब और हम न जाने किन चीजों में उलझे रहते है. हाल चाल जानने के लिए किसी ने पू...
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क्या से आगे क्या ? क्या से आगे क्या ? आक्षेप, पराक्षेप से भी क्या ? विशाल, व्यापक और विराट है क्या सर्वथा निस्सहाय ...
ये आशाओं के दीप ही दूर तक जाते हैं आशा प्रजव्लित रखते हैं मन में ...
ReplyDeleteभावपूर्ण ...
आभार।
Deleteये दीप प्रज्वलन सिर्फ़ दिये की बातीं ही नहीं
ReplyDeleteएक संकल्प संग उम्मीद की अलख जगाई है।...दीये की ज्योति के दिव्य दर्शन को दीपदीपाती प्रेरक पंक्तियाँ। विलक्षण विचार। आभार और बधाई।
Great readd
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