दोहा ः सावन, शिव, महाकाल
प्रंचड रूपी शंकरा, विराजित चहुँ ओर।
अटल रूपी महेश्वरा,रंजित जग की भोर।।
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निर्गुण,निराकार,नियंता,धारे रूप विशाल।
शिव रूपी सत् सनातनी,मुदित हुए शिवशाल।।
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हलाहल कंठ में लिए, करें निज जग कल्याण।
ऊँ कारा के बोल से, करो शिवम् का ध्यान।।
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हलाहल कंठ में लिए, करें निज जग कल्याण।
ऊँ कारा के बोल से, करो शिवम् का ध्यान।।
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नमोः नमोः महेश्वरा,गूंज रहा चहुँ ओर।
श्रावणी की अराधना, महाशाल में भोर।।
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सृष्टि धारयिता रक्षिता, समाय हित समाहित।
अक्षय हेमसुता स्वामी, आदि अंत से रहित।।
श्रावणी की अराधना, महाशाल में भोर।।
सृष्टि धारयिता रक्षिता, समाय हित समाहित।
अक्षय हेमसुता स्वामी, आदि अंत से रहित।।
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’..✍
(दिल्ली)