अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
Sep 13, 2018
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
लेखकीय रूप
अच्छा लगता है जब विशिष्ट समकालीन संदर्भ और तुर्शी के साथ जीवन,समाज के पहलूओं को उजागर करतीं लेख छपती है। इस सफ़र का हिस्सा आप भी बनिए,प...

-
कहने को तो ये जीवन कितना सादा है, कितना सहज, कितना खूबसूरत असबाब और हम न जाने किन चीजों में उलझे रहते है. हाल चाल जानने के लिए किसी ने पू...
-
तुम चुप थीं उस दिन.. पर वो आँखों में क्या था...? जो तनहा, नहीं सरगोशियाँ थीं, कई मंजरो की, तमाम गुजरे, पलों के...
-
क्या से आगे क्या ? क्या से आगे क्या ? आक्षेप, पराक्षेप से भी क्या ? विशाल, व्यापक और विराट है क्या सर्वथा निस्सहाय ...
उत्तम सृजन.....
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteबहुत सुंदर 👌👌
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteबहुत ही खूबसूरत
ReplyDeleteगागर में सागर समेट दिया आपने..
अनुपम
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद।
Deleteलाजवाब सायली छन्द...बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteवाह!!!
सुन्दर कृति के लिए बहुत बहुत बधाई पम्मी जी !
धन्यवाद शुभेच्छा सम्पन्न हेतु प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteवाह
ReplyDeleteवो फूल तो अब एक अमानत की तरह खिलते ही रहेंगे
शानदार रचना
जी,धन्यवाद।
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति। मेरे ब्लॉग पर भी आइये।
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteवाह!शानदार....
ReplyDeleteनन्हीं कलियों से खिले हुए ख़ूबसूरत रंग-बिरंगे सयाली छन्द.
बधाई.
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद.
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteजी,बहुत बहुत धन्यवाद.
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/09/87.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Deleteवाह
ReplyDeleteआभार।
Deleteवाह ... बहुत सुंदर पम्मी जी
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Deleteवाह!लाजवाब छंद 👌
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Delete