Jun 27, 2016

जो मिली वज़ा थी...

जो मिली वज़ा थी...

बस एक चुप सी लगी है...

जो मिली वज़ा थी

जो मिली बहुत मिली है,

बस एक बेनाम सा दर्द गुज़र कर

हर लम्हो को अपने नाम कर जाता,

सुकूत हि रिज़क बनी है

पर इक जिद्द सी मची है

ज़फा न होगी अब खिज़ा, हिज्र की

बस एक चुप सी...
                
                ©पम्मी

12 comments:

  1. खूबसूरत सदा-ए-जज़्बात

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  2. Dhanywad, ji ye jajbat hi kavya ka murt rup leti hai..

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  3. बहुत सुंदर और गहरा अहसास लिए हई रचना। बहुत खूब।

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  4. बहुत सुंदर और गहरा अहसास लिए हई रचना। बहुत खूब।

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  5. शानदार लेखनी !

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  6. वेहतरीन भावों की वेहतरीन अभिव्यक्ति।

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  7. वेहतरीन भावों की वेहतरीन अभिव्यक्ति।

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  8. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25-11-2019) को "गठबंधन की राजनीति" (चर्चा अंक 3537) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  9. सुन्दर प्रस्तुति

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