Showing posts with label मिली. Show all posts
Showing posts with label मिली. Show all posts

Jun 27, 2016

जो मिली वज़ा थी...

जो मिली वज़ा थी...

बस एक चुप सी लगी है...

जो मिली वज़ा थी

जो मिली बहुत मिली है,

बस एक बेनाम सा दर्द गुज़र कर

हर लम्हो को अपने नाम कर जाता,

सुकूत हि रिज़क बनी है

पर इक जिद्द सी मची है

ज़फा न होगी अब खिज़ा, हिज्र की

बस एक चुप सी...
                
                ©पम्मी

चन्द किताबें तो कहतीं हैं..

दिल्ली प्रेस से प्रकाशित पत्रिका सरिता (फरवरी प्रथम) में छपी मेरी लेख "सरकार थोप रही मोबाइल "पढें। सरिता का पहला संस्करण 1945 में ...