नीयत
खामोश जबानों की भी खुद की भाषा होती है
कभी अहदे - बफा के लिए ,
कभी माहोल को काबिल बनाने के लिए
मु.ज्तारिब क्या करू
नीयत नहीं . .
दूसरोंं पर कीचड़ उछाल कर
ख़ुद को कैसे साफ़ रखू
कभी खुद के घोंंसले ,
कभी दूसरोंं के तिनके
की पाकीज़गी बनाए रखने की , नीयत
मुख्तलिफ़ होकर भी
मुक्कमल जहान है
ये ख़ामोशी नहीं अपनी मसरुफ़ियत
ज़रा सी..
चंद खुशियों को महफूज़ रखने की ,नीयत
कभी खुद के घोंंसले ,
कभी दूसरोंं के तिनके
की पाकीज़गी बनाए रखने की , नीयत
मुख्तलिफ़ होकर भी
मुक्कमल जहान है
ये ख़ामोशी नहीं अपनी मसरुफ़ियत
ज़रा सी..
चंद खुशियों को महफूज़ रखने की ,नीयत