" रब की बख्शी गई उम्र के बागीचे में से
मैंने एक आज इक और उम्र चोरी की है..
क्या हुआ जो चाँद तारे दामन में न गिरें
अपने सितारों से खूब दिलजोई की है।"...
ओ मेरी जिदंगी हर दिल्लगी के लिए शुक्रिया
यादे मुड़ रही उस गली में जहाँ माँ, मौसी की बोलियां कभी थी ..
'एई चकभामा चक चक करेलू.."
यादों की शज़र से फिर गिरा पत्ता
एक कोंपल फिर उग रहा..
बहनों संग खेलना बोरी बिछा कर बाल काट देना, कभी
माचिस जला कर बेसिन में भरे पानी डूबों देना, बिन बात के छोटी बातों पर हँसते जाना,
खड़ी जीप (राँची,कुसाई कालोनी B/7.. Quarter r जीप न० BRV 5192) में सब कजिन पिन्टू, सिन्टू, और हम सब बहन अगल, बगल के दोस्त ) स्टियरिंग घुमा घुमा कर पूरी दुनिया घुम आते..इतना बिजी कि उफ़ निकल जाये।
नकल करने में माहिर.. गाना सुनाने के लिए कोई बोले तो..
आजा सनम मधुर चाँदनी में हम...तुम मिले तो जिया...
पूरा का पूरा सुना दी..जब छठी क्लास में.. मम्मी बोली तुम ये गाना कहाँ से सीखी वो भी पूरा..
बड़ा नखरे दिखा कर बताई..बस से जब घर आतें है तब पिछे वालीं सीट पर बड़ी क्लास मतलब (10वी) दीदी लोगों गाती हैं तो मैं भी सुन कर सीख गई...
दूसरी बार गाना.. मौसेरी बहन के आरा शहर के कर्जा गाँव में कांति दी के शादी में..एकदम अलग..हाथी, घोड़ें की दौड़ हुई थी.. खूब मज़ा आया.. हमलोग छत पे बैठ कर गाना की फरमाइश हुआ.. बम्बई से कुछ रिश्तेदार आये थे.. सब बोले चलो गाना सुनाओं हम में से किसी को गाना नहीं आता तो तुम जो भी सुनाओगी हमलोग से बेहतर ही..फिर अपनी सेफ्टी जोन देख फिर गाई..कितने भी कर ले सितम ,,हँस हँस कर सहेगें हम..सनम तेरी कसम...
फिर सनम को दो सेकंड तक बोल कर कम्पीटीशन लगाते रहे..
तीसरी बार फिर ऑन डिमांड पर गाना गाई..
शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है...नवी कक्षा में थी
तब..
मम्मी फिर अलग लहजे में बोली.. अभी तहार बियाह हो ता..गईबू ढेर गाना ..फिर तो जो चुप लगाई कि बस..
कई वर्षों बाद ..पैर का ऑपरेशन हुआ तो मम्मा बेड पर थी..मैं काम निपटाते हुए गुनगुना रही ...सुबह सुबह...आज हम इश्क इजहार करें तो क्या हो...
जान पहचान से इनकार करें तो क्या हो..
तो बोलीं ई कौन सा गाना कि शायरी गा
रही हो..तनि फिर से गाव तो.. मैं बोली आप तो ये पिक्चर जरूर देखी होगी.. हम्म.. हाँ..आगे गा..अच्छा लगता है.. घर में गुनगुनाती औरतें , चेहरे की हँसी माहौल बना देता है। ऐसे ही हँसों और गाव..तुमलोग को देख हमको सुकून मिलता है। बेकारे डाट डपट दिये थे..
वैसे बचपने की बातें माँ, पापा के ज़बान से जादा अच्छी लगती हैं। हैं.. न..
जानती हूँ माँ, पापा और आप सब देख रहे हैं मुस्कराते हुए,
जो छू कर गुजर रही सीली
हवाओं की तरह सहलाते हुए,
पिघले मोम की तरह ढल रही हूंँ समय के साचे में
कुछ शिकायतें कुछ जिद्द बड़ी अपनी सी पर..
कोई तो है अंदर जो संभाले हुए है इसलिए
ओ मेरी जिंदगी तेरी इस नज़र का शुक्रिया।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..
कुछ अलग सी दिलकशी सी..सुने..
समझे तो जरुर🙂