साहित्यिक और नवीनता की तलाश में एक और कदम..."लघुकथा कलश" अप्रकाशित रचनाओं के संग अपनी विशिष्टताओं के कारण व्यापक जनमानस तक पहुंचने का माद्दा रखतीं हैं। अच्छा लगता है जब पुस्तक के हिस्से बनते हैं और बहुत अच्छा लगता है जब विशिष्ट समकालीन संदर्भ और तुर्शी के साथ जीवन,समाज के पहलूओं पर चोट करतीं लघुकथाओं के रचनात्मक कार्यों के बीच एक नाम अपना भी देखतें हैं।
अल्पसंख्यक विमर्श कुमार संभव जोशी जी द्वारा चर्चा के दौरान समाज के कई पहलुओं से दो -चार होते हैं।
विमर्श क्या है?अल्पसंख्यक शब्द का तात्पर्य गंभीर संवाद की ओर मोड़ती है।
'तथागत' नक्सलवाद पर अधारित साकारात्मक संवेदनाओं को लेकर बुनी लघुकथा बहुत बढ़ियाँ।
'चौथी आवाज' लघुकथा साहसिक, समयानुकूल प्रशन उठा रही,'क्षमा कीजिए मंत्री जी,मैं इस देश के बहुसंख्यक वर्ग से हूँ, लेकिन समान्य नागरिक होने के नाते एक बात पूछना चाहता हूँ' मानो कह रहे बहुसंख्यक का क्या और क्यूँ कसूर?
अंत में वर्णित विभिन्न पहलुओं पर वैचारिक रूप और उनके द्वारा स्थापित किये रचनाओं का व्याख्यान पठनीय है। लघुकथा में सही शब्द की खोज विषय में शब्द सारणी द्वारा शब्द, विचार, समय की व्याख्या की गई है। रचनात्मकता के विभिन्न पहलुओं पर सार्थक चर्चा के दौरान सहज ही ' दर्शन शास्त्र और लघुकथा पर ध्यान जाता है। 'मैं सोचता हूँ, अतः मैं हूँ।,'मैं महसूस करता हूँ अतः मैं हूँ','मैं पढता हूँ, अतः मैं हूँ'... अंत में ' मैं लिखता हूँ, अत:मैं हूँ। लिखने की चाह रखने वाले व्यक्ति लिए सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।लघुकथा पर वैचारिक नियंत्रण और संतुलन की विशेषता ही प्रभावित करता है। विषय-वस्तु के
क्रमानुसार विश्लेषणात्मक विविरण गवाक्ष है लघुकथा के लेखन, निरूपण और सृजनात्मक सरोकार की।
रचनाकार आ०योगराज प्रभाकर जी के साहित्यिक गतिविधियाँ के लिए नमन।
शतशः बधाइयाँ
पम्मी सिंह 'तृप्ति'