जी, नमस्कार..
हमने भी गुस्ताखी कर डाली.. प्रदत्त बहर में लिखने की..🙏🏻🙂
2122 2122 212
मोड़ दी हमने मोहब्बत की सदा
अब पत्थरों से सखावत भूल गये,
आँख है भरी,बेकसों सी हैं अदा
बेदिली की अब इबादत भूल गये,
होश खो कर भी असर जाता नहीं
अब जमाने की हिफाजत भूल गये,
आरजूओं में कसीदा है अभी
पर सवालों से मसाफ़त भूल गये,
आज भी उम्मीद टूटती ही नहीं
अब धनक रंगों से इजाज़त भूल गये।
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’...✍