May 27, 2020

ग़ज़ल 2122 2122 212




जी, नमस्कार..
हमने भी गुस्ताखी कर डाली.. प्रदत्त बहर में लिखने की..🙏🏻🙂

2122 2122 212
मोड़ दी हमने मोहब्बत की सदा
अब पत्थरों से सखावत भूल गये,

आँख है भरी,बेकसों सी हैं अदा
बेदिली की अब इबादत भूल गये,

होश खो कर भी असर जाता नहीं
अब जमाने की हिफाजत भूल गये,

आरजूओं में  कसीदा है अभी
पर सवालों से मसाफ़त भूल गये,

आज भी उम्मीद टूटती ही नहीं
अब धनक रंगों से इजाज़त भूल गये।
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’...✍

Apr 15, 2020

पैमाने आरजूओं के...




चित्रधारित लेखन

इन आँखों की हया क्या कहने
पैमाने आरजूओं के दहक रहे

पूरी हो न सकी हसरतों की बातें
अरमान दिल के भटक रहे

संभलते रहे जीने की चाहत में
पर कई किरदार सिसक रहे

सजा रही अपनी पहलुओं में सितारे
‘पूजिता’ के पायल खनक रहे।
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’ पूजिता..✍

Apr 5, 2020

एक दीप देश के नाम..




दीये जलाकर हमने आशाओं की लौ जलाई है
जिंदगी से जंग लड़ने की कसम सभी ने खाई है
ये दीप प्रज्वलन  सिर्फ़ दिये की बातीं ही नहीं
एक संकल्प संग उम्मीद की अलख जगाई है।
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’...✍

Mar 9, 2020

रंगोत्सव..



कुंडलियां

रंग रंगीला साजना, करें बहुत धमाल।
फगुआ गाय घड़ी- घड़ी,करके मुखड़ा लाल।
करके मुखड़ा लाल, मरोड़ी मेरी कलाई।
कोमल सी नार मैं, छेड़ों न मेरी सलाई।
भीगी तृप्ति सोच रही, क्यूँ शिव बूटी माजना।
सांवली सूरत में , रंग रंगीला साजना।।
 पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍





मुक्तक
हर रंग सार लूँ इस होली में
खुशरंग उतार लूँ इस होली में
सन्नाटों के महफिल गंवारा नहीं-
एक फाग गा लूँ इस होली में।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍







Feb 6, 2020

मोहपाश में दरकते रिश्ते

दिल्ली प्रेस से प्रकाशित पत्रिका “सरिता” (फरवरी प्रथम 2020) में प्रकाशित मेरी आलेख
“ मोहपाश में दरकते रिश्ते “ को कृपया पढ़ें.. एवम् बहुमूल्य प्रतिक्रिया से अवगत कराए
धन्यवाद
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’
( Sarita.in website per e-magzine per bhi padha ja sakta hai )


            

        



Jan 26, 2020

नज़्म


देश की वर्तमान स्थिति के संदर्भ में कुछ शब्द...
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दिल्ली है सहमी हुई, लफ्जों की भूख बढ़ी
दौड़ों, भागों..अंधेरे आयेंगे, उजाले जायेंगे,

और कुछ हो न हो पर..पहरेदारी के आड़े
इसकी, उसकी,सबकी टोपी खूब उछालें जायेंगे,

अहल-ए-सियासत की फितरत ही जहालत है
झूठे वादे से यूँ ही कई महल बनायें जायेंगे,

गर कुछ बिगड़ गया है तो नाम-ए-आजादी ही
हल्ला बोल राजनीति से कब तक छुपायें जायेंगे,

इस बार ही नहीं, हर बार ही, बार - बार
मुद्दतों से यूँ ही नाकामियां छुपायें जायेंगे।
    
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍

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Jan 4, 2020

पुस्तक समीक्षा "विह्वल हृदय धारा"

                                          


"विह्वल हृदय धारा" पुस्तक में 24 कवि, कवित्रियों की काव्य रचनाएँ हैं। सम्पादकीय में उल्लेखित पंक्तियाँ ' परम्परा और आधुनिकता को एकसाथ लेकर बढ़ रहे काव्यकार ' को वज़ा ठहरा रही है। पुस्तक काव्य रचनाओं की विविध विधा को समेटे हुए है मानों आसमानी इंद्रधनुषी रंग पुस्तक पर उग आयी हो। कविता, ग़ज़ल, मुक्तक, गीत.... विधाओं में आधुनिकता और परम्पराओं का अवगुंठन है। आकाश को छूने की हुनर और शब्दों की काशीदाकारी.. इसे पढ़ कर ही समझा जा सकता है।
काव्य विकास का नया पड़ाव.. डॉ० सतीशराज पुष्करणा जी..द्वारा उद्वेलित शब्द व्याख्यान सभी रचनाकारों में साकारात्मक नवसंचार भरती है।
आ० नीलांशु रंजन जी द्वारा प्रस्तुत दो शब्द: इस संकलन के विषय में..
'' हम तो अकेले ही चले थे जानिब-मंजिल
लोग आते गए और कारवाँ बनता गया।"

विभा रानी जी के मेहनतकश व्यक्तित्व और सबको साथ लेकर चलने के साथ-साथ, नवांकुर रचनाकारों को एक आयाम भी स्थापित करती है। हर रचनाकारों की कृतियों की समीक्षा के साथ, चंद विश्लेषणात्मक शब्दावली पुस्तकों के पन्ने पलटने को विवश करती है।

कृष्णा सिंह की कविता"महाभारत कथा" पौराणिक पात्रों के जरिए सामाजिक सरोकार, नैतिकता और उपयोगिता को दर्शाया गया है।
"पिता पीपल की छाँव है, साहस का गाँव है"

ज्योति मिश्रा की ग़ज़ल दर्द को समेटे खूबसूरत ग़ज़ल है...
"दर बदर किया उसने लुट गयी ज़मीं दिल की"

कल्पना भट्ट की कविता 'विचलित मन'
'अब जाना है पाठशाला मुझको
जहाँ सीख सकूँ मैं भी कुछ" वर्तमान परिदृश्यों को देख कवि मन की बात उभर कर आयी है..
नसीम अख़्तर की ग़ज़लों की अलग बानगी है..
"चरागे सफ़र कि उसे क्या जरूरत
जो दिल में किसी को बताकर चला है"
आ०निलांशु रंजन जी के शब्दों को लिख रही हूँ.." पम्मी सिंह के मुक्तकों में तकरीबन सभी अच्छे है। पहला व पाँचवाँ मुक्तक खूबसूरत है।

"कौन है जो मेरे सफ़्हों के किरदार में, हर बार मरता है,
क्यूँ ये सियासत नफ़रतों के कारोबार से फलता है,.."

सुबोध कुमार सिन्हा की 'देहदान' और ' यार! गैस सिलेंडर यार ' समसामयिक बेहतरीन रचना है।


कल्याणी सिंह की रचना 'पर्यावरण पर सूली' , 'आत्मशक्ति' कवि हृदय की संवेदनशीलता और उहापोह को दर्शाती है।
संजय कुमार संज की मुक्तक अच्छी है..
"परिवर्तन का दौर है स्वीकार कीजिए
आज नहीं तो कल अंगीकार कीजिए.."


प्रभास कुमार 'प्रभास' द्वारा लिखित 'हर-हर गंगे!' में तारणहार गंगा नदी की लौकिक ,अलौकिक शक्तियों के वर्णन के साथ वर्तमान स्थितियों का विस्तृत वर्णन बहुत सुंदर बनी है।
श्वेता सिन्हा की 'झुर्रियाँ' ..उम्र की दास्तां है। हर झुर्रियाँ गवाह है अपने समय का ..

"खूबसूरत मुखौटे उतार कर यथार्थ से परिचय करवाती झुर्रियाँ" बहुत बढ़िया है।
सुनील कुमार की कविता 'टूट पड़ो आतंकवाद पर' वैश्विक समस्या आतंकवाद पर चोट करती अच्छी रचना है।
'ज्ञान बोझ नहीं ','फिक्र' रचना में संवेदनाओं को संयमित तौर से व्यक्त किया गया है।विभारानी श्रीवास्तव जी की कविताएं सामाजिक अनुभव व मानवीय व्यवहारों को दिखाती रचनाएँ हैं।
कुमारी अमृता , अंकिता कुलश्रेष्ठ की रचनाओं में स्त्रियों की मनोस्थिति और जमीनी हकीकत को दर्शाती रचना है।

पुस्तक का रंग ,आवरण दृश्य क्षितिज की असीमितता को दृष्टिगत कर रही है। पृष्ठभूमि में रचनाकारों की सलंग्न चित्र बहुत सुंदर जो रचनाकारों से एक संबंध स्थापित करती है। यह संकलन विविधताओं का समुच्चय है। मुक्तक, ग़ज़ल.. की भाषा प्रवृत्ति प्रवाहमयी है। व्याकरण कहीं कहीं रह गई है। पर सम्पादक के प्रयास काबिलेतारीफ है। समस्त काव्य कृतियाँ स्वाभाविक,सहज और सजीव है।
 'विह्वल ह्रदय धारा' , समाज के उतार चढ़ाव, मानवीय भावों के तानेबाने को गुनती, स्नेह और पीड़ा से लबरेज़ पुस्तक पठनीय और सहेजने योग्य पुस्तक है।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'
दिल्ली

पुस्तक: विह्वल हृदय धारा
प्रकाशक:आर०के० बुक एजेंसी पटना
सम्पादक: विभारानी श्रीवास्तव
मूल्य: 150 ₹



Women's rights

 Grihshobha is the only woman's magazine with a pan-India presence covering all the topics..गृहशोभा(अप्रैल द्वितीय)  ( article on women...