पापा ..
यूँ तो जहां में फ़रिश्तों की फ़ेहरिस्त है बड़ी ,
आपकी सरपरस्ती में संवर कर ही
ख्वाहिशों को जमीं देती रही
मगर अब..
जरा बेताब है मन, घिरती हूँ धूंधले साये से ,
हमारी तिफ़्ल - वश की ज़िद्द और तल्ख लहजों के गहराइयों को अब
हथेलियों के उष्ण में हौसलों को तलाशती रही
आपकी बुजूर्गियत ने ही तो हमें बहलायें रखा
उम्मीद करती हूँ हर पल किसी फ़जल का
पर मगा़फिरत की बात पर आपको
हाथ छोड़ कर जाते देखती रही
खबर तो होगी फितरतें बदलता है आस्मां भी
भंवर में निखरना सिखाया हैं आपने ही
हमारे हक़ में था बस इरादा बदलना
राह के पेचो खम से ग़ुज़रती पर संभलती रही..
©पम्मी सिंह✍
(तिफ़्ल - वश :बच्चों की तरह,फ़जल:कृपा, मगाफिरत:मोक्ष)