लफ्ज़ जो बयां न हो सका
तन्हाइयों में मुखर हो जाता
कोई है जो उसी मोड़ पर रुका, कोई है जो संग चला
वो सलीके से हवाओं में खुशबू बिखर जाता
कीमियागर बना है, कई अनाम लम्हातों का
तन्हाइयों में रकाबत का रिश्ता भी निखर जाता
रहगुज़र है तन्हा ,ग़म -ओ- नाशात का
इस अंधे शहर में जख्म फूलों का प्रखर जाता
लो आई है बहारे, जज़्ब हसरतों का
काविशों का मौसम में ही,
शऊर जिंदगी का निखर जाता
पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍
कीमियागर :रसायन विधा को जानने वाला
काविश: प्रयत्न,
रहगुज़र :रास्ता, पथ
रकाबत: प्रति द्वंद्वी,प्रणय की प्रतियोगिता
तन्हाइयों में रकाबत का रिश्ता भी निखर जाता ......वाकई, नगमानिगार हैं कीमियागर भी, कई अनाम लम्हातों का!!!मुबारक और आभार!!!!
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार।
Deleteबहुत खूब।
ReplyDeleteलफ्ज़ जो बयां ना हो सके
तन्हाई में मुखर हो जाता।।
सुभानअल्लाह।
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार ..
Deleteख़ूबसूरत अल्फ़ाज़ बयान कर रहे गहरे जज़्बात। हमारे एहसासों से गुजरती एक शानदार नज़्म। नए पंख की खुशबू नज़्म को ख़ूबसूरत रंग दे रही है। बधाई एवं शुभकामनाएं।
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार ..
Deleteवाह!!! बहुत खूब... अप्रतिम अल्फ़ाज़
ReplyDeleteबहुत- बहुत धन्यवाद
Deleteमन को छूनेवाली सुन्दर रचना है
ReplyDeleteआभार!
Deleteबहुत सुंदर शब्द-शिल्प से सजी शानदार रचना...वाह्ह्ह..👌👌👌
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार
Deleteआप एहसासों को बाँध लेती हैं और जाने नहीं देती पाठक अपनी नज़्म से दूर बहुत देर तक....
ReplyDeleteहर बार कुछ ऐसा ही महसूस होता है कि कलम ने बाँध लिया है।
बहुत गहरे जज़्बात।
सादर
शुभेच्छा सम्पन्न शब्दावली से प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार
Deleteकीमियागर है कई अनाम लम्हातों का
ReplyDeleteतन्हाइयों में रकाबत का रिश्ता भी निखर जाता
बहुत ही सुन्दर....
लाजवाब नज्म
वाह!!!
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार
Deleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Deleteवाह ...
ReplyDeleteशब्दों की नज़ाकत पढ़ने का मज़ा दुगना कर रहे हैं ...
बहुत लाजवाब लिखा है ...
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ अप्रैल २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आभार
Delete
ReplyDeleteलफ्ज़ जो बयां न हो सके
तन्हाइयों में मुखर हो जाता
कोई है जो उसी मोड़ पर रुका
सलीके से हवाओं में खूशबू बिखेर जाता-- sबहुत मधुर सुकोमल भावों से भरी सलीकेदार रचना --प्रिय पम्मी जी सस्नेह --
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार
Deleteबेहद खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार
Deleteबेहतरीन भावाभिव्यक्ति .
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार
Deleteलो आई है बहारे, जज़्ब हसरतों का
ReplyDeleteकाविशों का मौसम में ही शऊर जिंदगी का निखर जाता... वाह बहुत खूब , सुन्दर रचना