Jan 18, 2018

बवाल..






सुर्खियों में बवाल भी बिकते हैं
जो इघर रुख करें..
तो दिखाए बवाल इनकी..
मुंसिफ की जमीर है 
सवालों के घेरों में 
हाकिम भी वही
मुंसिफ भी वही
सैयाद भी वही
शिकायत भी कि बरबाद भी वही,
सो बीस साल से पहले
जम्हूरियत के दम पे बवाल कर बैठै,
समय के साथ 
बदल लेते हैं लिहाज़
खोखले शोर की शय हर सिम्त 
मसीहा के नाम दोस्तों
सोची समझी..
ये कोई और खेल है
फकत सवाल है हमारी..
क्यूँ इस्तहारों के नाम पे 
आप बवाल  बेचते हैं?
               पम्मी सिंह..✍


40 comments:

  1. आज सिर्फ़ बवाल बिकता है तभी सब बवाल बेचते हैं ... बवाल सेकते हैं ...
    गहरी बात कही है आपने ...

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  2. "मुंसिफ की जमीर है सवालों के घेरों में
    हाकिम भी वही
    मुंसिफ भी वही
    सैयाद भी वही
    शिकायत भी कि बरबाद भी वही",......वाह! क्या बखूबी आपने ज़मीर को झकझोरा है! पहले किसी ने कहा था ' मैं कवितायें बेचता हूँ' और आज अब बवाल भी बेचे जाने लगे. असलियत की अंदरूनी सूरत को इतने मुकम्मल तौर पर उजागर करने के लिए आपका एहसान और मुबारक!!! आपकी कलम को खुदा और नूर नवाजे और उम्र बख्शे.

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    1. जी,धन्यवाद..
      सदैव ही प्रोत्साहन देती आपकी प्रतिक्रिया।

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  3. वाह ..!!
    शानदार रचना.. शब्द संयोजन कमाल का असर प्रस्तुत कर रही है!

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    1. जी,धन्यवाद..
      सदैव ही प्रोत्साहन देती प्रतिक्रिया..

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  4. दहशत है फैली हर शहर मोहल्ले मोहल्ले
    नफरत भरी गलियां देखो इन हुक्मरानों की
    .
    भाव चवन्नी के बिकती मजबूर काया यहाँ
    बेगेरत मरती आत्मा देखो सियासतदानों की
    .
    तिल तिल मरते कर्ज में डूबे अन्नदाता यहाँ
    सुखा है दूर तलक देखो  हालत किसानों की
    .
    धर्म की बड़ी दीवार खड़ी  है  चारों  और यहाँ
    जानवर निशब्द है औकात नहीं इन्सानों की
    ............................

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  5. वाह ! क्या बात है ! "मुंसिफ का जमीर सवालों के घेरे में" बवाल तो बिना विज्ञापन के ही बिक जाते हैं ! लाजवाब प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।

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    1. जी,धन्यवाद..
      सदैव ही प्रोत्साहन देती आपकी प्रतिक्रिया।

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  6. बहुत सुंदर रचना
    बवाल ने तो धूम मचा रखी हैं
    बवाल के इतने रंग एक साथ कभी नही देखें थे
    रंग बिरंगा गुलदस्ता

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  7. बहुत सुंदर पंक्तियाँ ! बवालों के दम पर तो तख्ते पलट जाते हैं, शांति कायम हो जाए तो उनका क्या होगा जो बवाल बेचकर अपनी रोटियाँ सेंकते हैं। जबर्दस्त रचना ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद..
      सदैव प्रोत्साहित करती आपकी प्रतिक्रिया।

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  8. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'शनिवार' २० जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  9. वाह्ह पम्मी जी आपके बवाल ने तो दिलोदिमाग में कब्ज़ा कर लिया।बेहद शानदार लिखा आपने👌👌 आपका यह लेखन बहुत पसंद आया। बधाई आपको।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद..
      सदैव ही प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया..

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  10. बवाल में बड़े-बड़े कारनामे छुप जाया करते हैं
    बहुत खूब!

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  11. धार दार पैनी चोट!!!
    सच कहूं तो बवाल होते कंहा है पैदा किये जाते हैं लाशों पर स्वार्थ की हंडिया खदबदाती है और जाने कितनी जाने जाती है।
    पम्मी जी लाजवाब है आपकी असाधारण रचना।
    सुप्रभात शुभ दिवस।

    +Kusum Kothari धन्यवाद दीदी..
    आपकी टिप्पणी बहुत मायने रखती है
    मैं इसे ब्लॉग पर लगाना चाहती हूँ।
    +Pammi Singh जी जरूर मुझे अच्छा लगेगा।
    स्नेह आभार।

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  12. वाह्ह्ह्ह्
    बहुत खूब

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  13. मुंसिफ की जमीर है सवालों के घेरों में
    हाकिम भी वही
    मुंसिफ भी वही
    सैयाद भी वही
    शिकायत भी कि बरबाद भी वही,
    क्या बात है --सचमुच दोहरे चरित्र वाले ये हाकिम बर्बाद करते हैं देश को और छाती पीटते हैं खुद की बर्बादी का शोर मचाकर | बहुत ही सार्थक लिखा आपने | नकली बवाल पर सवाल क्यों ना हो ? सादर

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    1. आभार.. आपकी टिप्पणी देख बहुत खुशी हुई..

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    2. फकत सवाल है हमारी..
      क्यूँ इस्तहारों के नाम पे
      आप बवाल बेचते हैं?
      सच कहा बवाल सुर्खियों में बिकते हैं
      लाजवाब अभिव्यक्ति
      वाह!!!!

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  14. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना सोमवार २२जनवरी २०१८ के विशेषांक के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  15. लाज़वाब रचना
    बहुत बहुत बधाई

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  16. वाह बहुत खूब
    बधाई

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