जो इघर रुख करें..
तो दिखाए बवाल इनकी..
मुंसिफ की जमीर है
सवालों के घेरों में
सवालों के घेरों में
हाकिम भी वही
मुंसिफ भी वही
सैयाद भी वही
शिकायत भी कि बरबाद भी वही,
सो बीस साल से पहले
जम्हूरियत के दम पे बवाल कर बैठै,
समय के साथ
बदल लेते हैं लिहाज़
समय के साथ
बदल लेते हैं लिहाज़
खोखले शोर की शय हर सिम्त
मसीहा के नाम दोस्तों
सोची समझी..
सोची समझी..
ये कोई और खेल है
फकत सवाल है हमारी..
क्यूँ इस्तहारों के नाम पे
आप बवाल बेचते हैं?
पम्मी सिंह..✍
आज सिर्फ़ बवाल बिकता है तभी सब बवाल बेचते हैं ... बवाल सेकते हैं ...
ReplyDeleteगहरी बात कही है आपने ...
जी,धन्यवाद..
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
जी, धन्यवाद दीदी।
Delete"मुंसिफ की जमीर है सवालों के घेरों में
ReplyDeleteहाकिम भी वही
मुंसिफ भी वही
सैयाद भी वही
शिकायत भी कि बरबाद भी वही",......वाह! क्या बखूबी आपने ज़मीर को झकझोरा है! पहले किसी ने कहा था ' मैं कवितायें बेचता हूँ' और आज अब बवाल भी बेचे जाने लगे. असलियत की अंदरूनी सूरत को इतने मुकम्मल तौर पर उजागर करने के लिए आपका एहसान और मुबारक!!! आपकी कलम को खुदा और नूर नवाजे और उम्र बख्शे.
जी,धन्यवाद..
Deleteसदैव ही प्रोत्साहन देती आपकी प्रतिक्रिया।
वाह ..!!
ReplyDeleteशानदार रचना.. शब्द संयोजन कमाल का असर प्रस्तुत कर रही है!
जी,धन्यवाद..
Deleteसदैव ही प्रोत्साहन देती प्रतिक्रिया..
दहशत है फैली हर शहर मोहल्ले मोहल्ले
ReplyDeleteनफरत भरी गलियां देखो इन हुक्मरानों की
.
भाव चवन्नी के बिकती मजबूर काया यहाँ
बेगेरत मरती आत्मा देखो सियासतदानों की
.
तिल तिल मरते कर्ज में डूबे अन्नदाता यहाँ
सुखा है दूर तलक देखो हालत किसानों की
.
धर्म की बड़ी दीवार खड़ी है चारों और यहाँ
जानवर निशब्द है औकात नहीं इन्सानों की
............................
जी,धन्यवाद
Deleteवाह ! क्या बात है ! "मुंसिफ का जमीर सवालों के घेरे में" बवाल तो बिना विज्ञापन के ही बिक जाते हैं ! लाजवाब प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteजी,धन्यवाद..
Deleteसदैव ही प्रोत्साहन देती आपकी प्रतिक्रिया।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबवाल ने तो धूम मचा रखी हैं
बवाल के इतने रंग एक साथ कभी नही देखें थे
रंग बिरंगा गुलदस्ता
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ! बवालों के दम पर तो तख्ते पलट जाते हैं, शांति कायम हो जाए तो उनका क्या होगा जो बवाल बेचकर अपनी रोटियाँ सेंकते हैं। जबर्दस्त रचना ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद..
Deleteसदैव प्रोत्साहित करती आपकी प्रतिक्रिया।
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'शनिवार' २० जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteजी,धन्यवाद
Deleteवाह्ह पम्मी जी आपके बवाल ने तो दिलोदिमाग में कब्ज़ा कर लिया।बेहद शानदार लिखा आपने👌👌 आपका यह लेखन बहुत पसंद आया। बधाई आपको।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद..
Deleteसदैव ही प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया..
बवाल में बड़े-बड़े कारनामे छुप जाया करते हैं
ReplyDeleteबहुत खूब!
जी,धन्यवाद
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteधार दार पैनी चोट!!!
ReplyDeleteसच कहूं तो बवाल होते कंहा है पैदा किये जाते हैं लाशों पर स्वार्थ की हंडिया खदबदाती है और जाने कितनी जाने जाती है।
पम्मी जी लाजवाब है आपकी असाधारण रचना।
सुप्रभात शुभ दिवस।
+Kusum Kothari धन्यवाद दीदी..
आपकी टिप्पणी बहुत मायने रखती है
मैं इसे ब्लॉग पर लगाना चाहती हूँ।
+Pammi Singh जी जरूर मुझे अच्छा लगेगा।
स्नेह आभार।
वाह्ह्ह्ह्
ReplyDeleteबहुत खूब
आभार
Deleteमुंसिफ की जमीर है सवालों के घेरों में
ReplyDeleteहाकिम भी वही
मुंसिफ भी वही
सैयाद भी वही
शिकायत भी कि बरबाद भी वही,
क्या बात है --सचमुच दोहरे चरित्र वाले ये हाकिम बर्बाद करते हैं देश को और छाती पीटते हैं खुद की बर्बादी का शोर मचाकर | बहुत ही सार्थक लिखा आपने | नकली बवाल पर सवाल क्यों ना हो ? सादर
आभार.. आपकी टिप्पणी देख बहुत खुशी हुई..
Deleteफकत सवाल है हमारी..
Deleteक्यूँ इस्तहारों के नाम पे
आप बवाल बेचते हैं?
सच कहा बवाल सुर्खियों में बिकते हैं
लाजवाब अभिव्यक्ति
वाह!!!!
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना सोमवार २२जनवरी २०१८ के विशेषांक के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी, धन्यवाद
Deleteलाज़वाब रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
अतुल्य अभार..
Deleteलाजवाब!!
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Deleteवाह सुंदर
ReplyDeleteवाह सुंदर
ReplyDeleteअतूल्य आभार।
Deleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteबधाई
अतुल्य आभार।
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