विधाः गज़ल
विषय: बाजार
हसरतों के बाजार में सब्र की आजमाइश है
फिर क्यूँ तुम तड़पते विस्मिल की तरह।
बाजार-ए-दस्त में खड़ा जज़्ब-ए-फाकाकश है
फिर क्यूँ ये वादे साइल की तरह।
तिजारत-सरे-बाजार में तलबगार खुश है
फिर क्यूँ तुम गुजरे गाफिल की तरह।
शोख,वफा,जज़्ब में हिज्र की आजमाइश है
फिर क्यूँ ये ठहरे साहिल की तरह।
ताजिरो की नियाज से आलिमों की जुबां खामोश है
फिर क्यूँ तुम तड़पे दुआ-ए-दिल की तरह।
©पम्मी सिंह 'तृप्ति'.. ✍
(गाफिल-भ्रमित, विस्मिल-घायल, साइल-याचक,
ताजिरो-व्यापारी, तिज़ारत-रोजगार, व्यपार, तलबगार- इच्छा रखना, नियाज-भिक्षा, दुआ ए दिल-हृदय की प्रार्थना, जज्ब ए फाकाकश-भूखे रह जीने की भावना)