अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
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लेखकीय रूप
अच्छा लगता है जब विशिष्ट समकालीन संदर्भ और तुर्शी के साथ जीवन,समाज के पहलूओं को उजागर करतीं लेख छपती है। इस सफ़र का हिस्सा आप भी बनिए,प...

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कहने को तो ये जीवन कितना सादा है, कितना सहज, कितना खूबसूरत असबाब और हम न जाने किन चीजों में उलझे रहते है. हाल चाल जानने के लिए किसी ने पू...
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तुम चुप थीं उस दिन.. पर वो आँखों में क्या था...? जो तनहा, नहीं सरगोशियाँ थीं, कई मंजरो की, तमाम गुजरे, पलों के...
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क्या से आगे क्या ? क्या से आगे क्या ? आक्षेप, पराक्षेप से भी क्या ? विशाल, व्यापक और विराट है क्या सर्वथा निस्सहाय ...
रिश्तो को पकड़ने और जकड़ने की जद्दोज़हद शुरु हो जाती ..... पुन : शून्य से आरम्भ आहिस्ता आहिस्ता शाम की और कदम बढ़ती जाती ...अपनी जिंदगी समटने ,क़रीने से सजाने में।....लधु किन्तु भावपूर्ण लेखन , बधाई |
ReplyDeleteप्रतिक्रिया हेतु आभार,sir
ReplyDeleteदर्द और खुशी का समन्वय हि हमारे रिश्ते की पहचान ...
ReplyDelete...रिश्तों को बहुत सटीक रूप से परिभाषित किया है...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण..
बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार , sir
ReplyDeleteबेहद शानदार लेख। पम्मी जी, ब्लाग पर कमेंट करते वक्त नाम ईमेल के साथ अपना यूआरएल http://pammisingh.blogspot.in/ वेबसाइट वाले कॉलम में भर दिया कीजिए। इससे मैं सीधे आपके ब्लाग तक आसानी पहुंच सकूंगां। अभी तलाश करके पहुंचना पड़ता है।
ReplyDeleteजी,जरूर
ReplyDeleteप्रतिक्रिया हेतू घन्यवाद