Grihshobha is the only woman's magazine with a pan-India presence covering all the topics..गृहशोभा(अप्रैल द्वितीय)
( article on women's rights)
मेरी प्रकाशित रचना पेज न०-68
"आधी आबादी अधिकार बराबरी का "
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’...✍
अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
Grihshobha is the only woman's magazine with a pan-India presence covering all the topics..गृहशोभा(अप्रैल द्वितीय)
( article on women's rights)
मेरी प्रकाशित रचना पेज न०-68
"आधी आबादी अधिकार बराबरी का "
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’...✍
दिल्ली प्रेस से प्रकाशित पत्रिका सरिता (फरवरी प्रथम)
में छपी मेरी लेख "सरकार थोप रही मोबाइल "पढें।
सरिता का पहला संस्करण 1945 में प्रकाशित हुआ था।यह पत्रिका सामाजिक,राजनीतिक और पारिवारिक पुनर्निर्माण की विचारधारा पर आधारित है।
(पत्रिका blinkit ,Instamart पर hai,digital subscription available है।)
https://www.sarita.in/society/smartphones-government-is-imposing-mobiles
कहने को तो ये जीवन कितना सादा है, कितना सहज, कितना खूबसूरत असबाब और हम न जाने किन चीजों में उलझे रहते है. हाल चाल जानने के लिए किसी ने पूछा कैसे दिन कट रहा..
" सब ठीक ठाक " बोल निकल गई पर,जबकि सब ही शब्द विराट भाव लिए है.
सुकून की एक लंबी सांस ले गजल फैज अहमद फैज."मुझसे पहली सी मोहब्बत..." लगा ,किताब के कुछ पन्ने पलटते लगी पर मन में कुछ अटका हुआ महसूस कर रही..क्या है क्यूं है..बालकनी में मुस्कराते मोगरे के फूल देख ,स्मृतियों के आंगन से ...
कोई ध्यान भी न दे पर ये लिखने ,पढने की आदत' है तो है।' पत्रिका में धर्मयुग,माया,कादम्बरी ,सरिता,सारिका ,मनोरमा,गृहशोभा के अलावा प्रतियोगी परीक्षा के लिए किताबे कम्पीटेशन सक्सेस रीव्यू हर महीने आता था. चाचा भी साथ रहते तो सब कुछ न कुछ पढते रहते, साथ -साथ बातें, गप के साथ बहस बाजी भी..दुपहरी तो आंनद और किताब को छुपाने में कि कही कोई और ले जाए।(अमरचित्रकथा,चंदामामा,बैताल,मैन्ड्रक...)
'कांरवा' (त्रैमासिक),'इंडिया टुडे 'राजनीतिज्ञ ,सामाजिक तर्कसंगत लेख भी पढती हूं।
( मजाक में घर में बोल देते कि UPSC में बैठना है?)
आज भी आदत है माध्यम जरूर बदल गया.मोबाइल ,इन्टरनेट के साथ आज भी पत्रिका मंगाती हूं।blinkit पर मिलने से पत्रिका नहीं मिलने की शिकायत नहीं रहती।
आस - पास से मिलने वाले से बात करे तो सब बोलते.. पढते थे , मंगाते थे.स्थिरता की कमी लोगों में है, अगर मोबाइल पर भी चार लाइन से जादा हो तो नहीं पढते.
"समय की कमी का बहाना ...बेवजह ओढ़ने के आदी हम अनजाने हो गए. "
साहित्यिक गोष्ठी में जब गई थी,कुछ लोगो से पुछी भी क्या आप पत्रिका पढती है या मंगाते है किसी ने भी हां नहीं कहा बस घुमने खाने पीने आ गये..कुछ तो बोली पिछले बार जो गिफ्ट हैंपर में मिला वो पढ ली यही हकीकत है.
चलिए ये किस्सा चर्चा विषय था पढने की आदत छूट रही.." आजकल किताब लोग कितना खरीदते है?"
"कुछ व्यवस्थाए गति के साथ भविष्य भी तय करती हैं"
पेपर डिलीवरी में भी आजकल परेशानी हो रही..तो मैगजीन का क्या होगा?
हमारे सोसाइटी में एजेंट जो न्यूज पेपर डिलीवर करता है. बिल से जादा पैसा लेता,हमारे यहां टाइम्स ऑफ इंडिया,दैनिक जागरण ( इसकी हिंदी बाकी हिंदी पेपर से सही है)बिल से सौ रुपए जादा लेता इस तरह का कम्पेलन बहुत लोग करते mygate पर. उससे भी बोला गया पर कुछ नहीं..यहां तक की "टाइम्स ऑफ इंडिया","हिन्दुस्तान टाइम्स","टेलीग्राफ "के आफिस में कम्पेलन भी लोगो ने की पर कोई सुनवाई नहीं.कुछ लोगो के साथ मैं भी पेपर बंद की,शायद प्रेशर पड़े पर
उसके लिए तो "सब धान बाइस पसेरी"
बहुत लोगो ने डिजिटल ले ली और कुछ लोग ग्रुप में शेयर कर देते.एजेंट का जबाब कि घर पर पहुचाने का हमें भी लडको को देना पडता है हम अपने पाकेट से तो नहीं देंगे. आजतक पेपर ली किसी भी शहर में बिल के अलावा कभी न दी न किसी ने मांगा पर पौश एरिया गुरुग्राम (द्वारका एक्सप्रेस) में ये हाल है. पचास बसंत देख ली पर अब पहली बार पेपर डिजिटल फार्म में पढ रही ..वो लगावट ही नहीं लगती..सुबह की पेपर,चाय ,बालकनी और कुछ मुद्दे पर चर्चा खो सी गई..इसमें तो प्रकाशन विभाग की गलती है ...कन्जूमर को क्या दिक्कत हो रहा वो सुने तो. मेट्रो शहर में रख कर ये लिख रहे .."हमारी कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था..।"
प्रिंट मिडिया छापने के बाद डिलीवर पर भी तो ध्यान दे. बात यहां 100,50रूपया की नहीं पर बेवजह किसी की हनक में क्यूं दे? शार्ट में कहे तो नए तरह के "ठाकुराई " चल रही..(इस पर विवाद नहीं होना चाहिए)
या रात में सूरज की कमी की बात कह बिसार दे...✍️
पम्मी सिंह 'तृप्ति'
डायरी
20/जून 24
इधर कई दिनों से बहुत गर्मी आज उमस हो रही। कभी कभार बादल पूरे आसमान को ढके हुए। 'सब ठीक है' के भीतर उम्मीद तो जताई जा सकती,खुशियो की कटिंग सजा कर खैरियत और शुकराना। फिर,मैं बैग में से निकाल कर "फाल्ट इन अवर स्टार्स" पढ़ने लगी।
11/जून 24
बहुत मुश्किल होता कागज़ों में भावों को जबान देना। खासकर जब अपना खून का हिस्सा को अपने से दूर बहुत दूर जाते देखना। 'दीदी हम ठीक हो जाएंगे न?" "हाँ..क्यो नहीं..तुम अंदर से मजबूत रहो..बाकि .." भीगी पलको को छिपाने के लिए चेहरा घुमा ली।
उपर वाले की भी अजीब चाल है उसके लिखे को पढना मुश्किल है।शायद जाने का मन बना ली थी इसलिए आहिस्ता, आहिस्ता बिना किसी शोर, शराबे के गहरी नींद में सो गई।
पूर्णविराम इतनी जल्दी थमा तो गई,पर कतरा कतरा ही सही आज भी चली आती हो,आगे भी हमेशा थाम कर संभाले रहूंगी। खिड़की से देख रही कि आज भी सूरज नित डूबता उगता है ।आसमान लाल पीला नीला रंग लिए रहता..जमाल एहसानी की शेर याद आ रही...(8 मई 24 कभी न भूलने वाली सुबह हमारी बेबी (अमिता रंजन) छोड कर एक कोरा कागज।)
ये किस मकाम पे सुझी तुझे बिछड़ने की,
कि अब तो जा के कहीं दिन संवरने वाले थे।
5/जून 24
जिंदगी हमें आजमा रही थी, परख रही.. छोटी बहन अपने काम के सिलसिले में अमेरिका गई..20 दिन बाद जब लौटी तो महज एक छोटी सा लाल दाना जो तीन, चार दिन पहले ही उभर आया था उसे दिखाने डॉ के पास गई। पर...जो न सुनना था वहीं डॉ ने बोला..कैंसर है..जल्द ही इलाज शुरू करें।
खैर इलाज भी शुरू हो गया पर अपने कामकाज के प्रति गंभीर बिमारी के वज़ह से भीणकभी भी कमजोर नहीं हुई। हास्पिटल भी मीटिंग ऐटेड कर के गई। मानो उपर वाले ने परखने की लकीरें बड़ी गहरी बनाई हो।
बेबी (अमिता रंजन)तो शारीरीक और मानसिक दोनों और से परेशान थी,बहुत कर्मयोगी हैं.. देखने में छोटी हैं।🙂 थोड़ी जिद्दी भी है..पर ये काम की जिद्द न..कुछ कर गुजरने की वज़ह बनती है।
लगातार दो साल तक अथक प्रयास के बाद वो कई बाधाओं को पार कर अमेरिका से उपर्युक्त विषय पर पेटेंट मिला।
1. DISASTER PREDICTION RECOVERY: STATISTICAL CONTENT BASED FILTER FOR SOFTWARE AS A SERVICE
2. REWARD-BASED RECOMMENDATIONS OF ACTIONS USING MACHINE-LEARNING ON TELEMETRY DATA
3. INTEGRATED STATISTICAL LOG DATA MINING FOR MEAN TIME AUTO-RESOLUTION
बहुत ही खुशी के साथ गर्व की बात है।
मम्मी, पापा (श्री राम प्यारे सिंह, श्रीमती उषा सिंह )का नाम कर दी। पापा हमेशा बोलते थे बेटों से थोडी कम हो तुमलोग..न ही पढ़ाई में अपनी तरफ से कोई कमी की। उत्साह और आत्मविश्वास कोई तुमसे सीखे। धनक,महक, लहक फितरत थी। कुछ दिन रही रौनक रहा, जज़्बा रहा, ऊँचाईयों पे जा कर जमी से जुड़ी रही।
नाज़ है हम महिलाओं को तुम पर। कौन कहता है कि भाषा का माध्यम inventor, research के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है।
तुम पर तुम्हारा स्कूल, कॉलेज, बिहार,परिवार सब को गर्व है।
बातें तो बहुत सी है..पर इतने पर ही समाप्त कर रही हूँ..
दुष्यंत कुमार जी के शब्दों के साथ..
"कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो"
असीम शुभकामनाएँ।
इस लिंक पर विस्तृत वर्णन है..
https://patents.justia.com/search?q=amita+Ranjan
25/मई 24
कल की चिंता कब, क्यू हो जब आख़िरी चिंता जैसी चीज होती ही नहीं.दर्द से रिश्ता बहुत पुराना है. इक मोड पे हाथ छूटा कभी न मिलने के लिए. ये सत्य का अनुभव जितना सरल, विश्वास पे टिके रहना उतना ही कठिन ...कि आखिर हमारे साथ ही क्यों? अधूरेपन की कहानियाँ भगवान जी ने बनाई ही क्यों?
यादों के पक्षी उड़ना नहीं भूलते सो...बचपने की हाथ थाम कर घुमी तो तुम्हारी बातें याद आ गयी कि , 'प्लेट से रसगुल्ले खत्म क्यू हो रहा..फिर से रोना शुरू कर देना',नाक पे गुस्सा...मम्मी बोली क से कबूतर,ख से खरगोश... ग से....बोलो, दोहराव जब भारी लगे तो बोलने लगी, जोर से खगोस, खगोस, खगोस .... रांची शहर में कुशाई कालोनी में रहते थे..सब बङे मजे लेते , ''बेबी फिर से पढ़ाई करो तो.."भाभी बोलती बेबी मिचकर खाने आईए.."तोतली बातो से गुजरते हुए,कभी न छूटने के आंखों के वायदे ...खनकती हंसी-मजाक की चुप्पी अखरती है।
सफर के सजदे में...शुरूआत आरा,सासाराम,राँची,पटना ,राँची, दिल्ली,पूना, नोयडा, बैंगलोर और... बनारस।
ये जीवन है न एकदमे अलग शतरंज की बिसात बिछाती है हम कुछ और..ये देख और रही होती...
भाव भी ऐसा जो आंसुओ के दायरे में आती नहीं..दूर बहुत दूर निकल चला. तुम्हारे हिम्मत,हौंसले को तलाश रही। चलना तो है ..आगे जीना भी है.. नन्ही,इशित को आगे तुम ही ले जाना , राकेश जी के साथ क्योकि तुम्हारे आंखो के सपने को हंसते देखना है. सच है कि यादों की यूनिट इनफिनिटी होती है।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'(दीदी )
Grihshobha is the only woman's magazine with a pan-India presence covering all the topics..गृहशोभा(अप्रैल द्वितीय) ( article on women...