Jun 26, 2017

बनेगी अपनी बातें...

नहीं  दिखती वो राहेंजिन्हें दिखाया किसी और ने..
था तो, वो एक इशारा,
कुछ लंबी, थोड़ी छोटी, कुछ आड़ी, थोड़ी तिरछी या थी बंद...
बनेगी अपनी बातें...
जब  उन राहों पर चल पड़ेगें हमारे कदम...

                                  ©पम्मी सिंह

Jun 15, 2017

फितूर है..ये,




फितूर है..ये,  
कई दफा सोचती हूँ.. बड़ा अच्छा होता जो 'मैं' तुम्हारे 
किरदार में होती..

मैं तुम होती और मेरी जगह तुम..
और ...मैं नाहक जरा -जरा बात पे चिल्लाती, बोलती..
कुछ भी कर गुज़र जाती और..
 तुम चुपचाप सुन लेते..

गिरा कर कुछ खारे मोती. 
सफ्हों में खुद को तलाशते,

मैं..चुपके से देखती..
अनदेखी कर 
तुम क्या कर रहे हो..
.
शिलाओं के माफिक बन 
सबको समझती रहती..

जी,.. ये फितूर ही तो है..
जो सोची.. सोच सोचकर फिर सोची,
क्या?तुम म़े भी वो हुनर होगा..

जिससे खामोश लफ्ज़ों को पढा करते है....

लो..ये सोच फिर चली...
बेजा़र सी पांव पटक पटक कर..
और मैं!.. 
आराम कुर्सी पर
फितूर सोच, 
नींद से बोझिल पलकें...
जो खुली 'संजू' की आवाज़ ..
"बीसन जूता मरबै और एक गिनबै"

(संजू गृह सहायिका अपनी बच्ची को धमकाने 
के लिए अक्सर बोल जाती)

मुस्कराहटों को लबों पर लाकर बोली
हाँ..जी फितूर है..

बाम पर चाँदनी ने भी  दस्तक दी है..
'वो' भी  दफ्तर से आने वाले है '
मुझे भी अपनी पाक कला को आज़माना है...

ये फितूर भी  न  ...कहाँ से कहाँ तक ले जाती...



                                                                   पम्मी

(काल्पनिक  उड़ान .)


May 25, 2017

सुंदर शब्द माँ..









       हृदयविदारक दृश्य

मृत मां जाते जाते भी बच्ची को सीने से चिपका कर रखी .

फलक  पर  लिखा  सुंदर  शब्द  माँ  को  चरितार्थ  करती  ये  तश्वीर 

 निशब्द  कर  देती  है। विधाता   क्या  ऐसा  दिन  भी 


दिखाता  है।  जाते - जाते  भी  बच्चे  की  पेट  भर  गई  और  वो  मासूम  बच्ची..

..
क्या  कहूँ।   विधाता  अगर  दिल  में  नहीं  तो  कहां  है  तू।

May 19, 2017

इन्सान में अख्यात खुदा..




न जाने क्यूँ

हम खुद की ख्यालात लिए फिरते हैं कि

हर इन्सान में अख्यात खुदा बसता है

तो वो जो इन्सान है ,इन्सान में कहाँ रहता है?

जिनकी अलम होती शफ़्फाफ़ की

कश्तियाँ न कदी डगमगाई होगीं,

यहाँ हर शख्स कशिश में भी

सोने को हिरण में ढूंढ रहा

क्या पता जाने कहाँ है ?

वो इन्सान जिसमें खुदा होगा..

शायद..

वो जो खाली मकान है मुझमें,

वहाँ इन्सान में खुदा रहता होगा..

इस लिए 'वो 'सदाकत से गुम है,बुत है

खामोशी से फकत निगाह-बाह करता है..

हम खुद की ख्यालात.......
                                  ©पम्मी सिंह

अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...