Mar 7, 2024

गर्द-गर्द शहर...

 




बदल रहे हैं आजकल निसाब मौसमों के
सांस भी उलझ रहा, हिसाब मौसमों के,
ताल्लुक ग़र हमारा टूटें तो ये याद रखना-
गर्द-गर्द शहर की नुमाई हम ही,जवाब मौसमों के।
तृप्ति 
(निसाब-आधार,पूंजी)

हयात के तगामशी में गुम हुए इस कदर, 
ठहराव में शोरिश, दूर साहिल दिखती हैं,
गुमां सी हो चुकी थी कि... हम बहुत कुछ संभाल रहे,
दयार ए जात पे...फिर वही लकीरें,काविशे दिखती है।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'

(हयात -जीवन, तगामशी -भागदौड़, शोरिश -उपद्रव, काविश-
खोज, तलाश, जिज्ञासा)



 

Jan 22, 2024

आलोकित अयोध्या..

 आलोक हुई अयोध्या, राममय दीपदान से ,

उदात्त हुआ भाव, धर्म कर्म शुद्ध युक्त से।।

तृप्ति



Jan 1, 2024

नया साल..

 


"आदत है वक्त की, चाल और बिसात बदलेगा,

फ़ितरत है मोहरे की, तारीख़ और साल बदलेगा।"



कुछ नयी बात हो,शाद हो पर,पुरानी मुलाकातो की नयी कलेवर संग,"साल- ए -नौ बहार" की हार्दिक शुभता।


पम्मी सिंह 'तृप्ति '..✍️



Dec 12, 2023

सर्द हस्ताक्षर

 


सर्द हस्ताक्षर 

आगाज़ गुलाबी ठंड का,ओंस से नहाई धानी अंज,कंज लिए महिना दिसंबर हो चला,


हाथों में अदरक की सोंधी खुशबू से भरी एक कप चाय लिए महिना दिसंबर हो चला ,


पीली दुपहरी समेटे ,कोहरे की चादर पर सर्द हस्ताक्षर लिए महिना दिसंबर हो चला,


यादों की चादरें बुनें तो बुनते गये,गुनगुनी धूप लिए महिना दिसंबर हो चला।


कदम रुक -रुक के चलें तो चलतें गये,कई बंधनों को लिए महिना दिसंबर हो चला।


अलाव तापते,राख कुरेदते शकरकंदी खुशबू लिए, महिना दिसंबर हो चला।

पम्मी सिंह 'तृप्ति'


May 31, 2023

'प्रेम की पगडंडी

 





हर तरह से खैरियत है ,होनी भी चाहिए,

गर, जेठ की दोपहरी में कुछ खास मिल जायें,

तो फिर क्या बात है..!!

पर....

कहॉं आसान होता है,

शब्दों में बयां करना।

एक शब्द जो धड़कता है

हर दिल में..वो ' प्रेम ',और उसके रूप और नजरिया।

आसान नहीं होता ज़ज्बातों की गिरहो को खोलना.. तोलना.. फिर बोलना।

वक्त के चाक पर चलते हुए यही बोलना कि...

यूं तो जिंदगी के राह में है काफ़िले हजार ,

हमनवां है अब रहगुजर के संग ओ खार,

पर..…

रह जाता है कुछ न कुछ

और बिखरता है कुछ खास अंदाज में तो बनती है पगडंडिया..


इसी के साथ पेशकश है पुस्तक 'प्रेम की पगडंडी '

पृष्ठ संख्या- 57 पर मेरे शब्द रूपी रंग है,सभी कहानियों पर नज़र डालें आशा ही नहीं विश्वास है आप सभी भी ज़रूर डूबेंगे ✍️

क्यूंकि सफ़हो पे रकम कर देने से अनकहे लफ्ज़ बोल उठती है।

पम्मी सिंह 'तृप्ति' 


(संग-पत्थर, खार-कांटा, हमनवां -मित्र, रहगुजर -रास्ते,सफ़हा-पन्ना, रकम-लिखना)

https://acrobat.adobe.com/link/review?uri=urn:aaid:scds:US:2efd0909-7e23-3cfc-b0fc-a08eab6b39c7


Mar 7, 2023

रंग,रुबाई अंग -अंग में..


 


अहो!!
मतवारी हुई फागुनी रंग में
नैन हुई मतवाली भंग में
रंग,रुबाई अंग -अंग में,
अहो!!बोलों तो सही
फागुन कहाँ कहाँ बसायें हो?

समंदर समाया आज गिलास में..
नाचते बादल जमीं के तलाश में..
कदम लहक रहे फागुनी बतास में.
अहो!!बोलों तो सही
शरबत में क्या क्या मिलायें हो?

नजर बदल गयीं या नजारे बदल गये
रू ब रू  हो तो सही..
पर कैसा भ्रम है..
ये..आँखों पे अहो!!
आज कौन सा चश्मा सजाये हो?
पम्मी सिंह 'तृप्ति'✍️

Mar 6, 2023

रंग बरसे

 


रंग बरसे

रंगों का अब इंतजाम ..बस करों,
होली पे ये इल्जाम ..बस करों

शिकायत अबकी हम से न होगी,
सुर्ख़ आरिज़ के अंजाम..बस करों।

बरजोरी पिया की आज भली लगें,
झूठी शिकायत ओ' शाम..बस करों,

आना जाना,रस्म रिवाज रोज रोज की
रिवायतें औ बहाने सरेआम....बस करों,

मलंग मन,कस्तूरी सांसों मे घुल रही
जाते-जाते आँखों के इशारे
..बस करों।


पम्मी सिंह'तृप्ति'

अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...