सर्द हस्ताक्षर
आगाज़ गुलाबी ठंड का,ओंस से नहाई धानी अंज,कंज लिए महिना दिसंबर हो चला,
हाथों में अदरक की सोंधी खुशबू से भरी एक कप चाय लिए महिना दिसंबर हो चला ,
पीली दुपहरी समेटे ,कोहरे की चादर पर सर्द हस्ताक्षर लिए महिना दिसंबर हो चला,
यादों की चादरें बुनें तो बुनते गये,गुनगुनी धूप लिए महिना दिसंबर हो चला।
कदम रुक -रुक के चलें तो चलतें गये,कई बंधनों को लिए महिना दिसंबर हो चला।
अलाव तापते,राख कुरेदते शकरकंदी खुशबू लिए, महिना दिसंबर हो चला।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'
सुन्दर रचना
ReplyDeleteआभार।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteजी, धन्यवाद
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 20 मई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर
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