अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
Mar 7, 2024
गर्द-गर्द शहर...
Jan 22, 2024
Jan 1, 2024
नया साल..
फ़ितरत है मोहरे की, तारीख़ और साल बदलेगा।"
कुछ नयी बात हो,शाद हो पर,पुरानी मुलाकातो की नयी कलेवर संग,"साल- ए -नौ बहार" की हार्दिक शुभता।
पम्मी सिंह 'तृप्ति '..✍️
Dec 12, 2023
सर्द हस्ताक्षर
सर्द हस्ताक्षर
आगाज़ गुलाबी ठंड का,ओंस से नहाई धानी अंज,कंज लिए महिना दिसंबर हो चला,
हाथों में अदरक की सोंधी खुशबू से भरी एक कप चाय लिए महिना दिसंबर हो चला ,
पीली दुपहरी समेटे ,कोहरे की चादर पर सर्द हस्ताक्षर लिए महिना दिसंबर हो चला,
यादों की चादरें बुनें तो बुनते गये,गुनगुनी धूप लिए महिना दिसंबर हो चला।
कदम रुक -रुक के चलें तो चलतें गये,कई बंधनों को लिए महिना दिसंबर हो चला।
अलाव तापते,राख कुरेदते शकरकंदी खुशबू लिए, महिना दिसंबर हो चला।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'
May 31, 2023
'प्रेम की पगडंडी
गर, जेठ की दोपहरी में कुछ खास मिल जायें,
तो फिर क्या बात है..!!
पर....
कहॉं आसान होता है,
शब्दों में बयां करना।
एक शब्द जो धड़कता है
हर दिल में..वो ' प्रेम ',और उसके रूप और नजरिया।
आसान नहीं होता ज़ज्बातों की गिरहो को खोलना.. तोलना.. फिर बोलना।
वक्त के चाक पर चलते हुए यही बोलना कि...
यूं तो जिंदगी के राह में है काफ़िले हजार ,
हमनवां है अब रहगुजर के संग ओ खार,
पर..…
रह जाता है कुछ न कुछ
और बिखरता है कुछ खास अंदाज में तो बनती है पगडंडिया..
इसी के साथ पेशकश है पुस्तक 'प्रेम की पगडंडी '
पृष्ठ संख्या- 57 पर मेरे शब्द रूपी रंग है,सभी कहानियों पर नज़र डालें आशा ही नहीं विश्वास है आप सभी भी ज़रूर डूबेंगे ✍️
क्यूंकि सफ़हो पे रकम कर देने से अनकहे लफ्ज़ बोल उठती है।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'
(संग-पत्थर, खार-कांटा, हमनवां -मित्र, रहगुजर -रास्ते,सफ़हा-पन्ना, रकम-लिखना)
https://acrobat.adobe.com/link/review?uri=urn:aaid:scds:US:2efd0909-7e23-3cfc-b0fc-a08eab6b39c7
Mar 7, 2023
रंग,रुबाई अंग -अंग में..
Mar 6, 2023
रंग बरसे
शिकायत अबकी हम से न होगी,
सुर्ख़ आरिज़ के अंजाम..बस करों।
बरजोरी पिया की आज भली लगें,
झूठी शिकायत ओ' शाम..बस करों,
रिवायतें औ बहाने सरेआम....बस करों,
मलंग मन,कस्तूरी सांसों मे घुल रही
जाते-जाते आँखों के इशारे..बस करों।
लेखकीय रूप
अच्छा लगता है जब विशिष्ट समकालीन संदर्भ और तुर्शी के साथ जीवन,समाज के पहलूओं को उजागर करतीं लेख छपती है। इस सफ़र का हिस्सा आप भी बनिए,प...

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कहने को तो ये जीवन कितना सादा है, कितना सहज, कितना खूबसूरत असबाब और हम न जाने किन चीजों में उलझे रहते है. हाल चाल जानने के लिए किसी ने पू...
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तुम चुप थीं उस दिन.. पर वो आँखों में क्या था...? जो तनहा, नहीं सरगोशियाँ थीं, कई मंजरो की, तमाम गुजरे, पलों के...
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क्या से आगे क्या ? क्या से आगे क्या ? आक्षेप, पराक्षेप से भी क्या ? विशाल, व्यापक और विराट है क्या सर्वथा निस्सहाय ...