साहित्यिक पत्रिका "अर्य संदेश " विगत १० वर्षो से
साहित्यिक क्षेत्र में नित्य सलग्न हैं..
मेरी प्रकाशित रचना..
मुक्त नज्म
शाह सियासत उसूलों पर भी रंग बदलती है
निस्बत पत्थरों से रहमत का न तकाज़ा रखों,
निजाम- ए- शाह की जो बढ़ी बदकारियां
मुल्क के हालात पर आँखें खुली रखों,
सियासत गर वहशत, नफ़रत पर मुस्कराने लगे
आँखों में सवाल के संग मुठ्ठी ताने रखों,
दहकानों को मयस्सर नहीं दो जून के निवाले
इरादों में ईमान, आँखों में पानी रखों,
सिलसिला शह और मात पर जारी रहेगी
मुन्सिफ़ के कशीदाकारी पर मुख्तारी रखों।
©पम्मी सिंह'तृप्ति..
सिलसिला शह और मात पर जारी रहेगी
ReplyDeleteमुन्सिफ़ के कशीदाकारी पर मुख्तारी रखों।.... सुभान अल्लाह!
सच है सियासत जब नफ़रत का साथ दे रो मुट्ठियाँ चला भी देनी चाबियों ...
ReplyDeleteअलग अन्दाज़ के लाजवाब शेर हैं सभी बधाई ...
शुक्रिया।
Deleteसिलसिला शह और मात पर जारी रहेगी
ReplyDeleteमुन्सिफ़ के कशीदाकारी पर मुख्तारी रखों।...बहुत ख़ूब
आभार।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteआभार।
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/02/107.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Deleteशुक्रिया..
ReplyDeleteवाह्ह्ह.. बहुत सुंदर लाज़वाब...👍👍
ReplyDeleteआभार।
Deleteसियासत गर वहशत, नफ़रत पर मुस्कराने लगे
ReplyDeleteआँखों में सवाल के संग मुठ्ठी ताने रखों,
बहुत खूब.... बेहतरीन.. रचना, सादर स्नेह
वाह पम्मी जी गजब सी मुख्तार संभला दी ।
ReplyDeleteबेहद उम्दा बेहतरीन अस्आर हर शेर गहराई समेटे शानदार।
जी,धन्यवाद।
Deleteसियासत गर वहशत, नफ़रत पर मुस्कराने लगे
ReplyDeleteआँखों में सवाल के संग मुठ्ठी ताने रखों,
.......बहुत खूब
जी,शुक्रिया..
Deleteआभार
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