अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
Nov 18, 2018
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चन्द किताबें तो कहतीं हैं..
दिल्ली प्रेस से प्रकाशित पत्रिका सरिता (फरवरी प्रथम) में छपी मेरी लेख "सरकार थोप रही मोबाइल "पढें। सरिता का पहला संस्करण 1945 में ...

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कहने को तो ये जीवन कितना सादा है, कितना सहज, कितना खूबसूरत असबाब और हम न जाने किन चीजों में उलझे रहते है. हाल चाल जानने के लिए किसी ने पू...
वाह बहुत सुन्दर पम्मी जी थोड़े शब्द गहन अर्थ।
ReplyDeleteजी,शुक्रिया।
Deleteवाह
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत ही सुन्दर 👌
ReplyDeleteरंग की धारा गुनती.....
जी,धन्यवाद
Deleteबहुत ही सुन्दर 👌
ReplyDeleteआभार।
Deleteवाह! भीगते जज्बातों की खास बात!!! बहुत खूब!!!
ReplyDeleteजी,शुक्रिया..
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteसभी माहिया कमाल के हैं ...
ReplyDeleteलाजवाब
प्रतिक्रिया हेतु आभार..
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteसादर
आभार।
Deleteसभी बंध बेहल लाज़वाब है..वाहहह पम्मी जी..बहुत सुंदर माहिया...बधाई आपको👌👌
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
ReplyDeleteजी,धन्यवाद
ReplyDeleteप्रतिक्रिया हेतु आभार..
ReplyDeleteदिलकश माहिया --प्रिय पम्मी जी | सस्नेह शुभकामनाये |
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत सुन्दर गहन अर्थ लिए लाजवाब माहिया
ReplyDeleteवाह!!!
गागर में सागर
ReplyDeleteवस्ल का इंतज़ार ...
ReplyDeleteबहुत खूब ... कमाल के हाइकू हैं ...