अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
May 25, 2017
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
लेखकीय रूप
अच्छा लगता है जब विशिष्ट समकालीन संदर्भ और तुर्शी के साथ जीवन,समाज के पहलूओं को उजागर करतीं लेख छपती है। इस सफ़र का हिस्सा आप भी बनिए,प...

-
कहने को तो ये जीवन कितना सादा है, कितना सहज, कितना खूबसूरत असबाब और हम न जाने किन चीजों में उलझे रहते है. हाल चाल जानने के लिए किसी ने पू...
-
तुम चुप थीं उस दिन.. पर वो आँखों में क्या था...? जो तनहा, नहीं सरगोशियाँ थीं, कई मंजरो की, तमाम गुजरे, पलों के...
-
क्या से आगे क्या ? क्या से आगे क्या ? आक्षेप, पराक्षेप से भी क्या ? विशाल, व्यापक और विराट है क्या सर्वथा निस्सहाय ...
टी0 वी0 पर समाचार देखा! मन द्रवित हो गया! मार्मिक !
ReplyDeleteइसलिए ही कहते है कि माँ तो आखिर माँ होती है।
ReplyDeleteमन खराब होता है ऐसे दृश्य देख कर ... माँ जीते जो और मर कर भी बच्चों का ही सोचती है ... मार्मिक ...
ReplyDeleteमार्मिक।
ReplyDeleteमाँ तो माँ हैं जिसका जीवन ही सबके लिए समर्पित हैं
ReplyDeleteमाँ तो माँ हैं जिसका जीवन ही सबके लिए समर्पित हैं
ReplyDeleteमाँ तो माँ हैं जिसका जीवन ही सबके लिए समर्पित हैं
ReplyDeleteमाँ तो माँ हैं जिसका जीवन ही सबके लिए समर्पित हैं
ReplyDelete