अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
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कैसी अहमक़ हूँ
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वाह! क्या से क्या रचना कर डाली आपने।
ReplyDeleteबहुत खूब।
जी,बहुत-बहुत धन्यवाद:)
Deleteब्लॉग पर अपना महत्वपूर्ण समय एवम् अमूल्य शब्दों द्वारा प्रतिक्रिया देने के लिए.
अरे वाह क्या कहने..। क्या को भी क्या खूब इस्तेमाल किया। यह आपकी लेखन क्षमता को ही प्रतिबिम्बत करता है। तारीफ के काबिल है आपकी यह पोस्ट। पहले तो कुछ समझ नहीं आया लेकिन ध्यान से पढ़नें पर समझ आया और अच्छा लगा।
ReplyDeleteजी,बहुत-बहुत धन्यवाद:)
Deleteब्लॉग पर अपना महत्वपूर्ण समय एवम् अमूल्य शब्दों द्वारा प्रतिक्रिया देने के लिए.
क्या के आगे क्या? . . बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी,बहुत-बहुत धन्यवाद:)
Deleteब्लॉग पर अपना महत्वपूर्ण समय एवम् अमूल्य शब्दों द्वारा प्रतिक्रिया देने के लिए.
जी, धन्यवाद:)
ReplyDeleteजी,बहुत-बहुत धन्यवाद:)
ReplyDeleteबहुत ख़ूब ... पर हर क्या का जवाब क्यों हो ... ज़िंदगी सहज भी तो हो सकती है
ReplyDeleteजी,बहुत-बहुत धन्यवाद:)
Deleteब्लॉग पर अपना महत्वपूर्ण समय एवम् अमूल्य शब्दों द्वारा प्रतिक्रिया देने के लिए.
बहुत खूब । क्या को आपने अपने शब्दों मे फिरोकर बहुत खुबसूरती से सवार दिया है ।
ReplyDeleteजी,बहुत-बहुत धन्यवाद:)
ReplyDeleteब्लॉग पर अपना महत्वपूर्ण समय एवम् अमूल्य शब्दों द्वारा प्रतिक्रिया देने के लिए.
अच्छी रचना !
ReplyDeleteशुक्रिया,
उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद
क्या के माध्यम से बहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना । बहुत खूब ।
ReplyDeleteइस प्रोत्साहन और उपस्थिति हेतु बहुत बहुत शुक्रिया..
Deleteज़िन्दगी में कभी सवाल ही जवाब बन जाता है। चंद शब्दों में ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा ...... बहुत खूब कह डाला है आपने पम्मी जी। बधाई।
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।
Deleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।
Deleteक्या ? क्या शब्द है ? इसकी सुन्दरता में क्या मैं कहूँ ? क्या रचना है ? स्वयं प्रश्न भी एवं उत्तर भी आभार। "एकलव्य"
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।
Deleteसर्वथा निस्सहाय ! नहीं है ये क्या?
ReplyDeleteसर्वथा निस्सहाय नही है। ये क्या!
सर्वथा निस्सहाय नहीं है ये। क्या ?
क्या से क्या का बस यही हश्र है- निस्सहाय!
सही फरमाया सी लो अब भी सवालो में सिमटती सवालो की सिलवटो को !
सुंदर रचना ।
निमंत्रण
ReplyDeleteविशेष : 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय माड़भूषि रंगराज अयंगर जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 17 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteक्या लिखा है आपने
ReplyDelete'उपायो में है जबाब हर क्या का' बिलकुल सही। समाधान को तलाशती रचना।
ReplyDeleteक्या से क्या ....
ReplyDeleteजितना जवाब तलाशोगे उतनी ही उलझती जाती ज़िन्दगी ।