Jan 18, 2017

क्या से आगे क्या ?

क्या से आगे क्या ?


क्या से आगे क्या ?

आक्षेप, पराक्षेप से भी क्या ?

विशाल, व्यापक और विराट है क्या

सर्वथा निस्सहाय नहीं है ये क्या

उपायो में है जबाब हर क्या का
,
छोड़ो भी..

प्रश्न के बदले प्रश्न को

लम्हो की खता वर्षो में गुज़र जाएगी..

पत्थरो को तराश कर ही बनती है,

जिन्दगी के क्या का जबाब.
         

28 comments:

  1. वाह! क्या से क्या रचना कर डाली आपने।
    बहुत खूब।

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    1. जी,बहुत-बहुत धन्यवाद:)
      ब्लॉग पर अपना महत्वपूर्ण समय एवम् अमूल्य शब्दों द्वारा प्रतिक्रिया देने के लिए.

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  2. अरे वाह क्‍या कहने..। क्‍या को भी क्‍या खूब इस्‍तेमाल किया। यह आपकी लेखन क्षमता को ही प्रतिबिम्‍बत करता है। तारीफ के काबिल है आपकी यह पोस्‍ट। पहले तो कुछ समझ नहीं आया लेकिन ध्‍यान से पढ़नें पर समझ आया और अच्‍छा लगा।

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    1. जी,बहुत-बहुत धन्यवाद:)
      ब्लॉग पर अपना महत्वपूर्ण समय एवम् अमूल्य शब्दों द्वारा प्रतिक्रिया देने के लिए.

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  3. क्या के आगे क्या? . . बहुत सुन्दर

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    1. जी,बहुत-बहुत धन्यवाद:)
      ब्लॉग पर अपना महत्वपूर्ण समय एवम् अमूल्य शब्दों द्वारा प्रतिक्रिया देने के लिए.

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  4. जी,बहुत-बहुत धन्यवाद:)

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  5. बहुत ख़ूब ... पर हर क्या का जवाब क्यों हो ... ज़िंदगी सहज भी तो हो सकती है

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    1. जी,बहुत-बहुत धन्यवाद:)
      ब्लॉग पर अपना महत्वपूर्ण समय एवम् अमूल्य शब्दों द्वारा प्रतिक्रिया देने के लिए.

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  6. बहुत खूब । क्या को आपने अपने शब्दों मे फिरोकर बहुत खुबसूरती से सवार दिया है ।

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  7. जी,बहुत-बहुत धन्यवाद:)
    ब्लॉग पर अपना महत्वपूर्ण समय एवम् अमूल्य शब्दों द्वारा प्रतिक्रिया देने के लिए.

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    1. शुक्रिया,
      उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद

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  9. क्या के माध्यम से बहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना । बहुत खूब ।

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    1. इस प्रोत्साहन और उपस्थिति हेतु बहुत बहुत शुक्रिया..

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  10. ज़िन्दगी में कभी सवाल ही जवाब बन जाता है। चंद शब्दों में ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा ...... बहुत खूब कह डाला है आपने पम्मी जी। बधाई।

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    1. आपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।

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    1. आपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।

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  12. क्या ? क्या शब्द है ? इसकी सुन्दरता में क्या मैं कहूँ ? क्या रचना है ? स्वयं प्रश्न भी एवं उत्तर भी आभार। "एकलव्य"

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    1. आपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।

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  13. सर्वथा निस्सहाय ! नहीं है ये क्या?
    सर्वथा निस्सहाय नही है। ये क्या!
    सर्वथा निस्सहाय नहीं है ये। क्या ?
    क्या से क्या का बस यही हश्र है- निस्सहाय!
    सही फरमाया सी लो अब भी सवालो में सिमटती सवालो की सिलवटो को !

    सुंदर रचना ।

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  14. निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय माड़भूषि रंगराज अयंगर जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।

    अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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  15. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 17 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  16. क्या लिखा है आपने

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  17. 'उपायो में है जबाब हर क्या का' बिलकुल सही। समाधान को तलाशती रचना।

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  18. क्या से क्या ....
    जितना जवाब तलाशोगे उतनी ही उलझती जाती ज़िन्दगी ।

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