गर, जेठ की दोपहरी में कुछ खास मिल जायें,
तो फिर क्या बात है..!!
पर....
कहॉं आसान होता है,
शब्दों में बयां करना।
एक शब्द जो धड़कता है
हर दिल में..वो ' प्रेम ',और उसके रूप और नजरिया।
आसान नहीं होता ज़ज्बातों की गिरहो को खोलना.. तोलना.. फिर बोलना।
वक्त के चाक पर चलते हुए यही बोलना कि...
यूं तो जिंदगी के राह में है काफ़िले हजार ,
हमनवां है अब रहगुजर के संग ओ खार,
पर..…
रह जाता है कुछ न कुछ
और बिखरता है कुछ खास अंदाज में तो बनती है पगडंडिया..
इसी के साथ पेशकश है पुस्तक 'प्रेम की पगडंडी '
पृष्ठ संख्या- 57 पर मेरे शब्द रूपी रंग है,सभी कहानियों पर नज़र डालें आशा ही नहीं विश्वास है आप सभी भी ज़रूर डूबेंगे ✍️
क्यूंकि सफ़हो पे रकम कर देने से अनकहे लफ्ज़ बोल उठती है।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'
(संग-पत्थर, खार-कांटा, हमनवां -मित्र, रहगुजर -रास्ते,सफ़हा-पन्ना, रकम-लिखना)
https://acrobat.adobe.com/link/review?uri=urn:aaid:scds:US:2efd0909-7e23-3cfc-b0fc-a08eab6b39c7
वाह!!!
ReplyDeleteसादर।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई आपको प्रेम की पगडंडी में अपने भी शब्दरंग सजाने की ।
ReplyDeleteअनुपम
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" बुधवार 28 जून 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा धन्यवाद!
ReplyDeleteअप्रतिम सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई पम्मी जी!
ReplyDeleteप्रेम की पगडंडी पर कुछ कदम बढ़ाये हैं, मनमोहक है
ReplyDeleteबहुत खूब ... पे प्रेम ऐसा ही होता है ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर और अच्छी बात
ReplyDeleteप्रेम का स्वरूप ऐसा ही होता है
बेहतरीन प्रस्तुति
बधाई
कहां आसमान होता है शब्दों मे बयां... वाह वाह बहुत खूब
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं
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