Apr 15, 2020

पैमाने आरजूओं के...




चित्रधारित लेखन

इन आँखों की हया क्या कहने
पैमाने आरजूओं के दहक रहे

पूरी हो न सकी हसरतों की बातें
अरमान दिल के भटक रहे

संभलते रहे जीने की चाहत में
पर कई किरदार सिसक रहे

सजा रही अपनी पहलुओं में सितारे
‘पूजिता’ के पायल खनक रहे।
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’ पूजिता..✍

Apr 5, 2020

एक दीप देश के नाम..




दीये जलाकर हमने आशाओं की लौ जलाई है
जिंदगी से जंग लड़ने की कसम सभी ने खाई है
ये दीप प्रज्वलन  सिर्फ़ दिये की बातीं ही नहीं
एक संकल्प संग उम्मीद की अलख जगाई है।
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’...✍

चन्द किताबें तो कहतीं हैं..

दिल्ली प्रेस से प्रकाशित पत्रिका सरिता (फरवरी प्रथम) में छपी मेरी लेख "सरकार थोप रही मोबाइल "पढें। सरिता का पहला संस्करण 1945 में ...