Jan 7, 2022

टप्पे/ माहिया




टप्पे/माहिया

अफ़सानों की बातें
आँखों के वादे
क्यूँ नहीं समझ पातें

तू बड़ा ही सयाना है
इत उत बातों से
तू क्यूँ हाय रिझाता है
चल...
हट जा परे सोनिये
हँस दे घड़ी दो घड़ी
दो पल का जमाना है

पीर हिया की (मुझे) दे.. दे..
हाथ बढ़ातीं हूँ
इब रोज आना जाना है

ख्वाबों में मत आना
अरदास करूँ.. रब से 
तेरे नाल  जाना है।
  पम्मी सिंह ‘तृप्ति’.✍


No comments:

Post a Comment

अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...