अफ़सानों की बातें
आँखों के वादे
क्यूँ नहीं समझ पातें
तू बड़ा ही सयाना है
इत उत बातों से
तू क्यूँ हाय रिझाता है
चल...
हट जा परे सोनिये
हँस दे घड़ी दो घड़ी
दो पल का जमाना है
पीर हिया की (मुझे) दे.. दे..
हाथ बढ़ातीं हूँ
इब रोज आना जाना है
ख्वाबों में मत आना
अरदास करूँ.. रब से
तेरे नाल जाना है।
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’.✍
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