मुक्तक
१.
किताबों की सोहबत ही अच्छी रही
मोहब्बत की कहानियां इनमें मरी नहीं
छिपायें अदीबों ओ तालीम की गौहर-
खामोश,पर बहुत कुछ बोलती रही
२.
किताबों की सोहबत में तकदीर संवरती है..
कातिबों के क़सीदे से तहरीर निखरती है
औहाम की तंग गलियों से निकाल-
मुक्कमल किरदार की तश्वीर संवरती है।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍
(औहाम भ्रान्ति, धोखा, भ्रम)
सुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteसच है की किताबो की सोहबत कभी उदास नहीं होने देती ... सपनों की आदत रहती है ...
ReplyDeleteये अच्छी दोस्त हैं ... साथी हैं ...
प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteकिताबों की दुनिया जीवंत होती है...
ReplyDeleteबहुत खूब
प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteसुंदर के साथ साथ सार्थक भी। बधाई।
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteपुस्तकें सबसे प्रिय साथी हैं, कभी उदास नहीं होने देतीं... बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteआभार।
Deleteबहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteकिताबों की सोहबत ही अच्छी रही
ReplyDeleteमोहब्बत की कहानियां इनमें मरी नहीं
बहुत खूब पम्मी जी | ये किताबों की सोहबत का ही नतीजा है कि दुनिया में बहुत कुछ ज़िंदा है जो दुनिया को चलाने की कुव्वत रखता है | सस्नेह |