Mar 20, 2019

फागुनी,बसंत दोहे


फागुुनी,बसंंत

दोहे


नेह के द्वार खोलती, होली का त्योहार।
रिश्तों में उल्लास भरती, भावों का व्यवहार ।।

मदमस्त मलंग की टोली, गाते फाग बयार।
गुलाल उड़े गली गली, छाते बसंत बहार।।

वीणा की तार छेडे़,सुनाय राग मल्हार।
प्रीत रीत की राग से, गाय फागुन बहार।। 



राधिका हुई बांवरी, रंगें अंग प्रत्यंग।
फगुनाहट की आहट, तन मन हुआ मलंग।।


रंग बिरंगी ओढणी, लहरा कर बलखाय।
पपीहे के कुहूक से, अमराई इतराय ।।

©पम्मी सिंह'तृप्ति'

14 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना....आप को होली की शुभकामनाएं...

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  2. बहुत सुंदर रचना 👌

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  3. बहुत बढ़िया दोहे। आपको बधाई।

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, पम्मी दी।

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  5. फागुन और बसंत का रिश्ता अटूट होता है । सुंदर दोहे।
    नयी पोस्ट: इंतज़ार और आचार संहिता।

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  6. बहुत सुन्दर..

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