फागुुनी,बसंंत
दोहे
नेह के द्वार खोलती, होली का त्योहार।
रिश्तों में उल्लास भरती, भावों का व्यवहार ।।
मदमस्त मलंग की टोली, गाते फाग बयार।
गुलाल उड़े गली गली, छाते बसंत बहार।।
वीणा की तार छेडे़,सुनाय राग मल्हार।
प्रीत रीत की राग से, गाय फागुन बहार।।
राधिका हुई बांवरी, रंगें अंग प्रत्यंग।
फगुनाहट की आहट, तन मन हुआ मलंग।।
रंग बिरंगी ओढणी, लहरा कर बलखाय।
पपीहे के कुहूक से, अमराई इतराय ।।
©पम्मी सिंह'तृप्ति'
बहुत सुंदर रचना....आप को होली की शुभकामनाएं...
ReplyDeleteआभार..
Deleteबहुत सुंदर रचना 👌
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत बढ़िया दोहे। आपको बधाई।
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, पम्मी दी।
ReplyDeleteजी,धन्यवाद
ReplyDeleteसुंदर दोहे
ReplyDeleteशुक्रिया..
Deleteफागुन और बसंत का रिश्ता अटूट होता है । सुंदर दोहे।
ReplyDeleteनयी पोस्ट: इंतज़ार और आचार संहिता।
शुक्रिया..
Deleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeleteआभार
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