Dec 29, 2018

मुक्तक









मुक्तक..

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संदली हवाओं के रुख से आंचल लहराने लगें

पायलों के साज़ों से मंजिल गुनगुनाने लगें

फिर दफ़अतन हुआ यूँ कि-
उल्फतों में ख़सारा ढूंढ वो नज़रे बचाने लगें।

पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍


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सफ़्हो में ही कहीं न कहीं सिमटे रहेंगे

सफर के बाद भी यही कही बिखरे रहेंगे
सिफ़त ज़ीस्त का  हो समझना-
हमारी लफ़्ज़ों की हरारत इनमें  ही निखरे रहेंगे।
    पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍

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32 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना

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    1. प्रशंसित शब्दों के लिए धन्यवाद।

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  2. बहुत ही सुन्दर मुक्तक 👌

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    1. प्रोत्साहित प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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  3. सुंदर मुक्तक

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न शब्दों के लिए आभार।

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  5. वाह! आपकी उर्दू की नजाकत और बातों की बानगी का क्या कहना! आभार और बधाई।

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    1. प्रोत्साहित प्रशस्ति पूर्ण शब्दों के लिए धन्यवाद।

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  6. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/12/102.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  7. उर्दू शब्दों की मिठास और नजाकत से सजे खूबसूरत मुक्तक। नववर्ष की मंगलकामनाएँ आपको।

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद।

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  8. Very Nice.....
    बहुत प्रशंसनीय प्रस्तुति.....
    मेरे ब्लाॅग की नई प्रस्तुति पर आपके विचारों का स्वागत

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  9. बहुत बढिया 👌👌👌

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  10. बहुत खूब ...
    जिंदगी हर हाल में चलती रहनी चाहिए ... जहाँ सुख की तलाश हो वही सवेरा भी होता है ...
    नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...

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  11. प्रोत्साहित करती टिप्पणी के लिए धन्यवाद।

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  12. लाजवाब मुक्तक
    वाह!!!

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार..

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  13. वाह
    बहुत सुंदर रचना
    बधाई

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  14. प्रोत्साहित करती टिप्पणी के लिए आभार, आदरणीय

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  15. वाह बेहतरीन ।
    नफासत से उम्दा बानगी मे शब्दों को पिरोया आपने पम्मी जी।

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    1. प्रोत्साहित करती टिप्पणी के लिए धन्यवाद।

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  16. बहुत खूब........, पम्मी जी सादर स्नेह

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

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  17. मिठास से भरे बहुत सुंदर मुक्तक

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