संदली हवाओं के रुख से आंचल लहराने लगें
पायलों के साज़ों से मंजिल गुनगुनाने लगें
फिर दफ़अतन हुआ यूँ कि-
उल्फतों में ख़सारा ढूंढ वो नज़रे बचाने लगें।
पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍
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सफ़्हो में ही कहीं न कहीं सिमटे रहेंगे
सफर के बाद भी यही कही बिखरे रहेंगे
सिफ़त ज़ीस्त का हो समझना-
हमारी लफ़्ज़ों की हरारत इनमें ही निखरे रहेंगे।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍
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बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteप्रशंसित शब्दों के लिए धन्यवाद।
Deleteबहुत ही सुन्दर मुक्तक 👌
ReplyDeleteप्रोत्साहित प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteसुंदर मुक्तक
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ।
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न शब्दों के लिए आभार।
Deleteवाह! आपकी उर्दू की नजाकत और बातों की बानगी का क्या कहना! आभार और बधाई।
ReplyDeleteप्रोत्साहित प्रशस्ति पूर्ण शब्दों के लिए धन्यवाद।
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/12/102.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Deleteउर्दू शब्दों की मिठास और नजाकत से सजे खूबसूरत मुक्तक। नववर्ष की मंगलकामनाएँ आपको।
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद।
DeleteVery Nice.....
ReplyDeleteबहुत प्रशंसनीय प्रस्तुति.....
मेरे ब्लाॅग की नई प्रस्तुति पर आपके विचारों का स्वागत
जी,धन्यवाद।
Deleteबहुत बढिया 👌👌👌
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteजिंदगी हर हाल में चलती रहनी चाहिए ... जहाँ सुख की तलाश हो वही सवेरा भी होता है ...
नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...
प्रोत्साहित करती टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteलाजवाब मुक्तक
ReplyDeleteवाह!!!
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार..
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
बधाई
प्रोत्साहित करती टिप्पणी के लिए आभार, आदरणीय
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteवाह बेहतरीन ।
ReplyDeleteनफासत से उम्दा बानगी मे शब्दों को पिरोया आपने पम्मी जी।
प्रोत्साहित करती टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
Deleteबहुत खूब........, पम्मी जी सादर स्नेह
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteवाह...
ReplyDeleteशुक्रिया..
Deleteमिठास से भरे बहुत सुंदर मुक्तक
ReplyDeleteशुक्रिया।
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