हमारी किस्सागोइ न हो..इसलिए
ख्वाबों को छोड़ हम हकीकत की
पनाह में आ गए हैं,
अजी छोड़िए..
उजालों को..
यहाँ पलकें भी मूंद जाती है,
अंधेरा ही सही..
पर आँखें तो खूल जाती है,
हमने भी उम्मीद कब हारी है?
फिर नासमझी को
सिफत समझदारी से समझाने में
ही कई शब गुजारी हैं,
अब सदाकत के दायरे भी सिमटे
तभी तो झूठ में सच के नजारें हैं
जख्म मिले हैं अजीजों से
निस्बत -ए-खास से कुछ दूरी बनाए रखे हैं
छोड़िए इन बातों को..
जिन्दगी ख्वाबों ,ख्यालातों और ख्वाहिशों
कहाँ गुज़रती है,
रवायतों में न सही अब खिदमतों में ही
समझदारी है ,इसलिए
ख्वाबों को छोड़ हम हकीकत की
पनाह में आ गए हैं..
©पम्मी सिंह..
आपकी रवायतों से रु ब रु होने में अच्छी खासी मसक्कत करनी पड़ती है , तब जा के तफसीस से इस अहसास का इल्म होता है कि आपके तख्खयुल न सिर्फ सदाकत से लबरेज हैं बल्कि ज़ज्बातों के बेमिशाल सिफ़त से रोशन भी हैं. आपके बेहतरीन ख्यालों का मुबारकवाद! मुझे उर्दू सिखाने के लिए तहे दिल से शुक्रिया और मेरी गलतियों के लिए मुआफी!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया..
Deleteमर्म समझने के लिए आभार आपका..
बहुत ख़ूब
ReplyDeleteआभार..
Deleteवाह वाह बेहतरीन शानदार रचना आपकी।
ReplyDeleteजो हमने खोला दिल का तस्सवुर
क्यों आप के यूं होश गुम हुवे
दर्द बस आपका ही है जमाने मे दर्द
गम हमारा तो जैसे मुकद्दर समझ बैठे।
उम्मीद पर जीने से हासिल कुछ नही लेकिन
यूं ही दिल को जीने का सहारा भी न दें।
शुभ रात्री।
लेखनी से निकली सुंदर शब्द सरिता के लिए आपको धन्यवाद
DeleteVery nice
ReplyDeleteThank you..
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ReplyDeleteरवायतों में न सही अब खिदमतों में ही
ReplyDeleteसमझदारी है ,इसलिए
ख्वाबों को छोड़ हम हकीकत की
पनाह में आ गए हैं..----
बहुत खूब -- आदरणीय पम्मी जी -- हकीकतों का सम्मान करना ही जीवन की सबसे बड़ी समझदारी है --सस्नेह शुभकामना --
साकारात्मक अवलोकन हेतु धन्यवाद..
Deleteजी,धन्यवाद..
ReplyDeleteक्या बात ...
ReplyDeleteहकीकत इस कदर बेरहम होती है की न चाहते हुए भी इंसान इसे अपनाता है ...
पर ये झूठ के नज़ारे भी नहीं ठहरते लम्बे समय तक ...
बेहतरीन शब्दों का जाल ... लाजवाब ...
बहुत बहुत शुक्रिया..
Deleteमर्म समझने के लिए आभार आपका
वाह्ह्ह्ह् क्या बात
ReplyDeleteबहुत उम्दा
बहुत बहुत शुक्रिया..
Deleteख्वाब गर हकीकत बन जायेंगे तो ख्वाब कैसे कहलायेंगे . ख्वाब देखिये लेकिन हकीकत के साथ ज़िन्दगी बिताइए . :)
ReplyDeleteखूबसूरत रचना .
बहुत बहुत शुक्रिया..
Deleteमर्म समझने के लिए आभार आपका
वाह ! लाजवाब प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया..
Deleteनमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
ReplyDelete( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरूवार 28-12-2017 को प्रकाशनार्थ 895 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। प्रातः 4:00 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक चर्चा हेतु उपलब्ध हो जायेगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
जी,धन्यवाद
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteजी,धन्यवाद
Deleteबेहतरीन!मै आपकी कविताओं की कायल हो गयी हूँ.
ReplyDeleteआपकी लेखनी बेहद अलग, बेहद ख़ास है.
लाज़वाब!
सादर
सच..आपकी प्रतिक्रिया से निहाल हूँ।
Deleteवाह!!लाजवाब।।
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Deleteलाजवाब....,अत्यन्त सुन्दर ...।
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