क्यूँ नहीं भूल जाती
बेजा़र सी बातों को हजारों बातें तो रोज़ ही होती रहती.. चलो एक ये भी सही..
पर न..मजाल है जो ज़ेहन से रुखसत हो
दिमाग में तो किराएदार के माफिक घर ही कर गई कई दफा गम ख्वार ख्यालातों को उतार फेका पर नहीं..
छोड़ो भी,भूल जाओ,कोई बात नहीं, आगे भी बढों..कहना जितना आसान असल में भूलना उतना ही मुश्किल..
बस एक छोटी सी ख्वाहिश है कि भूलने की कोई दवा इज़ाद हो जाए..
तो फिर क्या बात होगी..
पर वो खुल्द मयस्सर न होगी..
हाँ.. जहीनी तौर पर आराम तो होगी..
सबसे बड़ी बात कि ये जो हमारी आँखें हैं न..
कम से कम मेढक की आँखों की तरह तो नहीं बनती..
मानो अभी ये हथेलियों पर आ कर उछल कूद मचाने लगेगी..
उ..हूँ..
अच्छी तरह से वाकिफ़ हूँ.. मेरी बातें कमजर्फ सी लग रही होगी..
पर मैं आज यही लिखूंगी..
भूलने वाली बातें याद और याद रखने वाली बातें भूलकर लगी तारे गिनने क्यूँ कुछलोग हद पार कर जाते ..
बितता लम्हा बिसरे नहीं..
बहुत दिन हुए ..खु.. के गालों पर पड़ते डिम्पल को देखे..रब के हिटलिस्ट में हूँ शायद..
अधखुले किताबें, अखबारें, एक कप..ये क्या है,
क्यूँ है..कौन सा सलीब है..
ऐसी भी जहीनी क्या?
बेफिक्री वाली हंसी हंसना चाहती हूँ ..इत्ता कि
सामने वाले की हंसी या तो गायब हो (मानो कह रहा लो मेरे हिस्से की भी ले लो)या हंसने लगे
और मन के किसी कोने में बैठा भय बस..सहम ही जाए..
मुसाफिर हूँ बस.. खुशनसीब शज़र की
दरकार तो बनती है..
इसमें कुछ गलत तो नहीं.. क्या ?
ज़िंदगी का सवाल और सफ़लता नफा नुकसान में ही क्यूँ समझ आता है।
पम्मी सिंह.., ✍
बहुत खूबसूरत रूमानी एहसास में लिपटा नज़्म....
ReplyDeleteवाह्ह्ह....बहुत खूब👌👌
आपकी प्रतिक्रिया से निहाल हूँ..
Deleteधन्यवाद
बेजुबान महसूस कर रहा हूँ कोई फौरी बयान देने में इस बेमिसाल जहीनी तकरीर पर जो हर हाल में मेरे जेहन की हैसियत से आले दर्जे का है. मेरी बातें यक़ीनन कमजर्फ सी लग रही होंगी,लेकिन यही हकीक़त है. इस तहरीर का सफ़र मानो खयालातों के खुल्द से रु ब रु होना है. बधाई और शुक्रिया!!!
ReplyDeleteआभार विश्व मोहन ज़ी आपकी सराहनीय शब्दों के लिये ...🙏
Deleteबहुत खूबसूरती से बयान की गयी नज़्म., बधाइ
ReplyDeleteसच..आपकी प्रतिक्रिया से निहाल हूँ
Deleteतआज़्ज़ुब
ReplyDeleteगूगल फॉलोव्हर का गैजेट
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सादर
रचना को यह सम्मान देने हेतु तहेदिल से शुक्रिया..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कृति आदरणीया पम्मी जी
ReplyDeleteरचना को यह सम्मान देने हेतु तहेदिल से शुक्रिया..
Deleteबहुत सुन्दर भाव .....,
ReplyDeleteरचना को यह सम्मान देने हेतु तहेदिल से शुक्रिया..
Deleteज़िंदगी को सदैव ही हिसाब समझाा गया है , पम्मी जी...देह से मन तक सभी का अलग अलग मोल है...
ReplyDeleteजी,धन्यवाद..।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी,धन्यवाद..
Deleteहैरान हूं इस कृति को padhkar. नि:शब्द हूं. लग रहा है जैसे बहुत दिन से यही तो कहना चाह रही थी.
ReplyDeleteपम्मी जी ये रचना बेहद खास है.अतिउत्तम.साधुवाद
सादर
रचना को यह सम्मान देने हेतु तहेदिल से शुक्रिया आदरणीया।
Deleteबहुत ही लाजवाब नज्म....
ReplyDeleteअद्भुत अविस्मरणीय....
वाह!!!
रचना को यह सम्मान देने हेतु तहेदिल से शुक्रिया आदरणीया।
Deleteजी,तहेदिल से शुक्रिया..
ReplyDeleteअनकहे अनजाने बहुत से लम्हों से गुज़रती बातें, कुछ यादें .... भूलने की मनुहार पर खान भूलती हैं ये खुरदरी सतहें ... अपने अप से किये कुछ सवाल .... ज़िन्दगी के पैमाने .... सफलता के मायने .... फिर खुल के गहरी हंसी ...
ReplyDeleteज़िन्दगी क्या ठहरा हुआ वक़्त है ...
लाजवाब ख्याल ...
रचना को यह सम्मान देने हेतु तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय।
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteजी,धन्यवाद..
DeleteReally it's difficult to describe you in a word. You are deep in your thinking. Every creation is superb.
ReplyDeleteLove to follow you.
Thank you..
Deleteवाह ! क्या कहने हैं ! लाजवाब !! पढ़िए तो बस पढ़ते रहिए ! बार बार ! बार बार ! कुछ रवानी ही ऐसी है ! बहुत खूब आदरणीया ।
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