Sep 26, 2017

जश्न की हर बात ..






अभी-अभी शहर का मौसम बदला है
जश्न की हर बात पर 
आज़माईशों का रंग बदला है..

गुनाहों के देवता से रफ़ाकत जता
मौजूद हालातों का गम निकला है..

क़ाइल करूँ किस शाह,सियासत पे

  शहर ,दहर ,खबर में रोजगार का तुफ़ निकला है..


गश खा रहा है बागबां भी
परस्तिशों के मौसम में
नुमाइशों का भी दम निकला है

पशेमान है नारास्ती भी..
काविशों के दौर में
हर शय  में अब
साजिशों का भी ख़म चला है...
                                      ©पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️


  • नारास्ती= कपटता, बेईमानी, 
  • परस्तिश= पूजा, अराधना,काविश -प्रयत्न,
  • पशेमान=  लज्जित
  • तुफ़: .श्राप,बरबाद curse,  शहर-ए-शिकस्ता   ..तुटा हुआ शहर, काइल ः सहमती agree

Sep 16, 2017

तफसील है ये लफ्ज़...







पन्नों पे तख़य्युल के अक्सों को उकेर कर देखो ,
कमाल है, इन अल्फाज़ों में ,
जो कई ज़िंदगी के सार लिख जाते हैं..,
रह कर इन हदों में
लफ्ज़ दिखा जाते .. कई सिल - सिले,

रखती हूँ, 
अल्फाजों में खुद का इक हिस्सा
तो निखर जाती है ख्यालों की ताबीर..,

तफसील है ये लफ्ज़, अख्यात जज्बातों का
शउर वाले जबान रख कर सफ्हों पर बिखर जाती..

अल्फाज़ है तर्जुमानी की, 
सो स्याही के सुर्खे-रंग को हिना कर देखों..

लहजे तो इनके असर होने में हैं,
हमनें तो बस आज लिखा है..
इन सफ़हे-आइना पर,

 क़मर आब की जिक्र कर
तुम अपना कल लिख देना
           ..                  © पम्मी सिंह

तख़य्युल- कल्पना, तफसील -विस्तृत, क़मर-चांद


Women's rights

 Grihshobha is the only woman's magazine with a pan-India presence covering all the topics..गृहशोभा(अप्रैल द्वितीय)  ( article on women...