ये है हमारी रूदाद..
शनासाई सी ये पच्चीस वर्ष शरीके-सफर के साथ
सबात लगाते हुए
असबात कभी अच्छी कभी बुरी की..
ताउम्र बेशर्त शिद्दत से निभाते रहे..
सोचती हूँ ये जिंदगी रोज़ नई रंगो में ढलती क्यूँ हैं..
कई दफ़ा कहा..
कभी इक रंग में ढला करो..
गो एक हाथ से खोया तो दूसरे से पाया
हादिसे शायद इस कदर ही गुज़र जाती है..
शादाबों का मलबूस पहन
तरासती हूँ उस उफक को जो धूंध से परे हो..
मामूल है ये जिंस्त हर ख्वाब-तराशी के लिए
सबब है उल्फत की जिनमें सराबोर है चंद
मदहोशियाँ,सरगोशियाँ,गुस्ताखियाँ और बदमाशियाँ
वाकई.. पर मौत को वजह नहीं बनाने आई हूँ।
©पम्मी सिंह
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वाह ! क्या कहने हैं ! लाजवाब !! बहुत खूब
ReplyDeleteप्रेरक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।
Deleteमाशा अल्लाह! उर्दू के मखमली मलबूस में बेनज़ीर रूदाद!
ReplyDeleteआपकी समीक्षात्मक प्रेरक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।
Deleteवाह !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
सोचती हूँ ये जिंदगी रोज़ नई रंगो में ढलती क्यूँ हैं..
लाजवाब....।
वाह !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
सोचती हूँ ये जिंदगी रोज़ नई रंगो में ढलती क्यूँ हैं..
लाजवाब....।
रचना पढने व उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,
Deleteबहुत खूब ... मखमली शब्दों से रूहानी एहसास लिए लाजवाब रचना ...
ReplyDeleteरचना पढने व उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,
Deleteज़िन्दगी के आरोह -अवरोह जब विविध रंगों के साथ उभरते हैं तो कुछ ऐसी ही उम्दा मार्मिक रचना के साथ दिल को छूते हैं। शब्दों के अर्थ लिख देना एक बेहतर विकल्प है पाठकों को रचना का मर्म समझने में सहायता के लिए।
ReplyDeleteरचना पढने व उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteलाजवाब रचना.....
ReplyDeletemere blog ki new post par aapka swagat hai.
जी,धन्यवाद।
Deleteबहुत ही शानदार और प्रभावी रचना की प्रस्तुति। मुझे बेहद पसंद आई। अच्छे लेखन के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं। रचना बहुत पसंद आई।
ReplyDeleteप्रेरक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।
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