अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
Jun 27, 2016
Jun 18, 2016
वो बोल...
आहटे नहीं है
उन दमदार कदमों के
चाल की,
गुज़रती है जेहन में
..
वो बोल
‘मैं हूँ न..
तुमलोग घबराते क्यों
हो ?’
वो सर की सीकन और
जद्दोजहद,
हम खुश रहे..
ये निस्वार्थ भाव
कैसे ?
आप पिता थे..
अहसास है अब भी
आपके न होकर भी होने
का
गुंजती है..
तुमलोग को क्या
चाहिए ?
पश्चताप इस बात
न पुछ सकी
आपको क्या चाहिए..
इल्म भी हुई जाने के
बाद,
एनको के पीछे
वो आँखें नहीं
पर दस्तरस है आपकी
हमारी हर मुफ़रर्त
में..
©पम्मी
©पम्मी
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