Feb 14, 2016

कल की जिक्र कर...









जुम्बिशे  तो  हर    इक   उम्र  की  होगी 
कसमसाहटों की  आहटें  भी  होगींं ,
शायद   इसलिए  ही 
कल  की  ज़िक्र  कर 
आज  ही  संवर  जाते , 
ज़िस्त  यू  ही
कटती  जाती 
किसी  ने  कहाँ ?
क्यू  कल  की  चिंता . . 
वो  भी  आजमा  कर.. 
रुकी  हुई  सी  ज़ीस्त 
कसमसाती   ज़ज़्बातों  की  आहटें 
शायद   इसलिए  ही 
कल  की  ज़िक्र  कर 
आज  ही संवर  जाते  हैं 
हर  उम्र  की  देहरी   को 
इस  तरह  लांघे  जाते हैं 
क्या  जाने ?
इम्ऱोज  का  फ़र्दा    क्या  हो 
पर  हर  ज़ख़्म   पिए   जाते  हैं 
हर  खलिश  को   दफ़न कर 
मुदावा  खोज़  लाते  हैं 
शायद वो  फ़र्दा  हमारा  होगा 
ये  सोच कर ,. 
ज़ुम्बिशें  ही  सही 
               दरमांदा ,पशेमान से मुलाकात भी                                                                                               पर बाज़ाब्ता
हर  उम्र  के  इक  देहरी  को
कुछ इस तरह 
लांघे  जाते  हैं.. 

                                      - ©पम्मी सिंह 'तृप्ति' ..✍️.   

(बाज़ाब्ता-नियमपूवर्क, दरमांदा-विवश, ईमरोज़-आज़,मुदावा-दवा,इलाज)




                                                                                                         चित्र  गूगूल के संभार  से                                                                                                                          

22 comments:

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  2. वाह, बहुत ही खूबसूरत गज़ल पेश की है आपने। इसका एक एक अल्फाज़ दिल की गहराईयों में उतर जाता है। बहुत खूब पम्मी जी।

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  3. वाह, बहुत ही खूबसूरत गज़ल पेश की है आपने। इसका एक एक अल्फाज़ दिल की गहराईयों में उतर जाता है। बहुत खूब पम्मी जी।

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  4. प्रतिक्रिया हेतू आभार,सर.

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  5. ज़ुम्बिशें हि सही
    दरमांदा ,पशेमान से मुलाकात भी
    पर बाज़ाब्ता
    हर उम्र के इक देहरी को
    कुछ इस तरह
    लांघे जाते हैं..
    ...वाह...लाज़वाब अहसास और उनकी प्रभावी अदायगी..बहुत उम्दा

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  6. पम्मीजी कल की अच्छी सोच हमारा आज कुछ तो संवार देती ही है फिर उसके दामन में चाहे कुछ भी हो। कुछ कठिन शब्दों के अर्थ दे देतीं तो और अच्छा होता जैसे कि दरमांदा, बाजाब्ता, मुदावा आदि।

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    1. जी,प्रतिक्रिया हेतु आभार
      च़द शब्दो के अर्थ के साथ ः)

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  7. खूबसूरत एहसासों को शब्दों में ढालकर बहुत ही वेहतरीन प्रस्तुति.....

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    1. प्रतिक्रिया हेतु आभार..

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    2. प्रतिक्रिया हेतु आभार..

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  8. दिल की गहराइयों तक उतरती दर्द को उभारती बेहतरीन ग़ज़ल। बधाई पम्मी जी।

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    1. इस प्रोत्साहन और उपस्थिति हेतु बहुत बहुत शुक्रिया..

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  9. बहुत सुन्दर, सार्थक गजल....
    लाजवाब..

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    1. इस प्रोत्साहन और उपस्थिति हेतु बहुत बहुत शुक्रिया

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  10. Replies
    1. इस प्रोत्साहन और उपस्थिति हेतु बहुत बहुत शुक्रिया..

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  11. दरमांदा ,पशेमान से मुलाकात भी
    पर बाज़ाब्ता
    हर उम्र के इक देहरी को
    कुछ इस तरह
    लांघे जाते हैं..
    आदरणीय ,सुन्दर रचना ! हृदय से निकले शब्द ,आभार। "एकलव्य"

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    1. इस प्रोत्साहन और उपस्थिति हेतु बहुत बहुत शुक्रिया..

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