तलाश
स्वतंत्रता तो उतनी ही है हमारी
जितनी लम्बी बेड़ियों की डोर
हर इक ने इच्छा, अपेक्षा,
संस्कारो और सम्मानो की
संस्कारो और सम्मानो की
सीमाए डाल रखी है,
तलाश है उस थोड़े से आसमान की
तलाश है उस थोड़े से आसमान की
किसी ने कहीं देखा है?
वो इक आकाश का टुकड़ा
वो इक आकाश का टुकड़ा
जहाँ हम ही हम हो,
उन्मुक्ता, अधिकार मिली सभी चराचर को
फिर. ..
फिर. ..
हमे मांगना ही क्यों पड़ा
क्यू न हो ऐसा कि
स्वतंत्रता सब की जरूरत बन जाए...
तलाश है उस थोड़े से आसमान की
फिर..
उस वसुन्धरा की काया
कुछ और ही होती
तलाश है...
- © पम्मी सिंह 'तृप्ति'..
(चित्र गूगल के सौजन्य से )
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