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Oct 25, 2017

लर्जिश है हर शब्दों में ..,













               💮💮

मौन है गर्जन है

 रत है विरक्त है

शून्य है..

शब्द है पर खामोश है

नत है ..

हर ऊषा की प्रत्युषा भी

जब्र वक्त है ..

वक्त यहाँ बडा कम है

रमय है अब राम भी

कहाँ हो तुम

यहाँ है हम

बोझिल है हर पल भी

हैरान हूँ ..

जिंदगी की सास्वत सत्य से

कि सुनते थे जिसे रोज

अब ,बहाना बचा नहीं मुलाकात का,

पर कर्तव्यनिष्ठ है

निष्ठुर मन भी,

गीला हैं..

 मन का एक कोना

इन धूप के गलीचों में भी,

गुजरते वक्त के साये से

मौन अभ्यावेदन है कि

यूँ ही संभालें रहते हैं

रिश्तों के भ्रम को

जो तू है आसमान में

और जमीन पर मैं पड़ी,

उलझ रही हूँ

सजदों के लिए,

लर्जिश है

हर शब्दों में क्योंकि

कभी दुआ  नहीं माँगी थी

 आप के होते हुए...

जीना है ..

 हाँ जीना है बढना है

टीसते दुख के साथ

तिरोहित हो

पर हम में ही बसी हो

अभ्यंतर,अभ्यंतर,अभ्यंतर..।

                                      ©पम्मी सिंह... ✍ 

#काव्य,#कविता,#शब्द,#माँ

लेखकीय रूप

   अच्छा लगता है जब विशिष्ट समकालीन संदर्भ और तुर्शी के साथ जीवन,समाज के पहलूओं  को उजागर करतीं लेख छपती है। इस सफ़र का हिस्सा आप भी बनिए,प...