Jun 20, 2024

बादल पूरे आसमान को ढके हुए

 

डायरी

20/जून 24

इधर कई दिनों से बहुत गर्मी आज उमस हो रही। कभी कभार बादल पूरे आसमान को ढके हुए। 'सब ठीक है' के भीतर उम्मीद तो जताई जा सकती,खुशियो की कटिंग सजा कर खैरियत और शुकराना। फिर,मैं बैग में से निकाल कर "फाल्ट इन अवर स्टार्स" पढ़ने लगी।

11/जून 24

बहुत मुश्किल होता कागज़ों में भावों को जबान देना। खासकर जब अपना खून का हिस्सा को अपने से दूर बहुत दूर जाते देखना। 'दीदी हम ठीक हो जाएंगे न?" "हाँ..क्यो नहीं..तुम अंदर से मजबूत रहो..बाकि .." भीगी पलको  को छिपाने के लिए चेहरा घुमा ली।

उपर वाले की भी अजीब चाल है उसके लिखे को पढना मुश्किल है।शायद जाने का मन बना ली थी इसलिए आहिस्ता, आहिस्ता बिना किसी शोर, शराबे के गहरी नींद में सो गई। 

पूर्णविराम इतनी जल्दी थमा तो गई,पर कतरा कतरा ही सही आज भी चली आती हो,आगे भी हमेशा थाम कर संभाले रहूंगी। खिड़की से देख रही कि आज भी सूरज नित डूबता उगता है ।आसमान लाल पीला नीला रंग लिए रहता..जमाल एहसानी की शेर याद आ रही...(8 मई 24 कभी न भूलने वाली सुबह हमारी बेबी (अमिता रंजन) छोड कर एक कोरा कागज।)

ये किस मकाम पे सुझी तुझे बिछड़ने की,

कि अब तो जा के कहीं दिन संवरने वाले थे।

5/जून 24

जिंदगी हमें आजमा रही थी, परख रही.. छोटी बहन अपने काम के सिलसिले में अमेरिका गई..20 दिन बाद जब लौटी तो महज एक छोटी सा लाल दाना जो तीन, चार दिन पहले ही उभर आया था उसे दिखाने डॉ के पास गई। पर...जो न सुनना था वहीं डॉ ने बोला..कैंसर है..जल्द ही इलाज शुरू करें।

खैर इलाज भी शुरू हो गया पर अपने कामकाज  के प्रति गंभीर  बिमारी के वज़ह से भीणकभी भी कमजोर नहीं हुई। हास्पिटल भी मीटिंग ऐटेड  कर के गई। मानो उपर वाले ने परखने की लकीरें बड़ी गहरी बनाई हो।

बेबी (अमिता रंजन)तो शारीरीक और मानसिक दोनों और से परेशान थी,बहुत कर्मयोगी हैं.. देखने में छोटी हैं।🙂 थोड़ी जिद्दी भी है..पर ये काम की जिद्द न..कुछ कर गुजरने की वज़ह बनती है।

लगातार दो साल तक अथक प्रयास के बाद वो कई बाधाओं को पार कर अमेरिका से उपर्युक्त विषय पर पेटेंट मिला।

1. DISASTER PREDICTION RECOVERY: STATISTICAL CONTENT BASED FILTER FOR SOFTWARE AS A SERVICE


2. REWARD-BASED RECOMMENDATIONS OF ACTIONS USING MACHINE-LEARNING ON TELEMETRY DATA


3. INTEGRATED STATISTICAL LOG DATA MINING FOR MEAN TIME AUTO-RESOLUTION 

बहुत ही खुशी के साथ गर्व की बात है।

मम्मी, पापा (श्री राम प्यारे सिंह, श्रीमती उषा सिंह )का नाम कर दी। पापा हमेशा बोलते थे बेटों से थोडी कम हो तुमलोग..न ही पढ़ाई में अपनी तरफ से कोई कमी की। उत्साह और आत्मविश्वास कोई तुमसे सीखे। धनक,महक, लहक फितरत थी। कुछ दिन रही रौनक रहा, जज़्बा रहा, ऊँचाईयों पे जा कर जमी से जुड़ी रही।

 नाज़ है हम महिलाओं को तुम पर। कौन कहता है कि भाषा का माध्यम inventor, research के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है।

तुम पर तुम्हारा स्कूल, कॉलेज, बिहार,परिवार सब को गर्व है।

बातें तो बहुत सी है..पर इतने पर ही समाप्त कर रही हूँ..

दुष्यंत कुमार जी के शब्दों के साथ..

"कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता

एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो"

असीम शुभकामनाएँ।

इस लिंक पर विस्तृत वर्णन है..

https://patents.justia.com/search?q=amita+Ranjan

25/मई 24

कल की चिंता कब, क्यू हो जब आख़िरी चिंता जैसी चीज होती ही नहीं.दर्द से रिश्ता बहुत पुराना है. इक मोड पे हाथ छूटा कभी न मिलने के लिए. ये सत्य का अनुभव जितना सरल, विश्वास पे टिके रहना उतना ही कठिन ...कि आखिर हमारे साथ ही क्यों? अधूरेपन की कहानियाँ भगवान जी ने बनाई ही क्यों? 

यादों के पक्षी उड़ना नहीं भूलते सो...बचपने की हाथ थाम कर घुमी तो तुम्हारी बातें याद आ गयी कि , 'प्लेट से रसगुल्ले खत्म क्यू हो रहा..फिर से रोना शुरू कर देना',नाक पे गुस्सा...मम्मी बोली क से कबूतर,ख से खरगोश... ग से....बोलो, दोहराव जब भारी लगे तो बोलने लगी, जोर से खगोस, खगोस, खगोस .... रांची शहर में कुशाई कालोनी में रहते थे..सब बङे मजे लेते , ''बेबी फिर से पढ़ाई करो तो.."भाभी बोलती बेबी मिचकर खाने आईए.."तोतली बातो से गुजरते हुए,कभी न छूटने के आंखों के वायदे ...खनकती हंसी-मजाक की चुप्पी अखरती है।

सफर के सजदे में...शुरूआत आरा,सासाराम,राँची,पटना ,राँची, दिल्ली,पूना, नोयडा, बैंगलोर और... बनारस।

ये जीवन है न एकदमे अलग शतरंज की बिसात बिछाती है हम कुछ और..ये देख और रही होती...

भाव भी ऐसा जो आंसुओ के दायरे में आती नहीं..दूर बहुत दूर निकल चला. तुम्हारे हिम्मत,हौंसले को तलाश रही। चलना तो है ..आगे जीना भी है.. नन्ही,इशित को आगे तुम ही ले जाना , राकेश जी के साथ क्योकि तुम्हारे आंखो के सपने को हंसते देखना है. सच है कि यादों की यूनिट इनफिनिटी होती है।

पम्मी सिंह 'तृप्ति'(दीदी )





बादल पूरे आसमान को ढके हुए

  डायरी 20/जून 24 इधर कई दिनों से बहुत गर्मी आज उमस हो रही। कभी कभार बादल पूरे आसमान को ढके हुए। 'सब ठीक है' के भीतर उम्मीद तो जताई...