Mar 14, 2024

अनकहे का रिवाज..


 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे 
पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे,

मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर
अनकहे का रिवाज है पर कहे को निभाए जा रहे। 
पम्मी सिंह 'तृप्ति'

Mar 7, 2024

गर्द-गर्द शहर...

 




बदल रहे हैं आजकल निसाब मौसमों के
सांस भी उलझ रहा, हिसाब मौसमों के,
ताल्लुक ग़र हमारा टूटें तो ये याद रखना-
गर्द-गर्द शहर की नुमाई हम ही,जवाब मौसमों के।
तृप्ति 
(निसाब-आधार,पूंजी)

हयात के तगामशी में गुम हुए इस कदर, 
ठहराव में शोरिश, दूर साहिल दिखती हैं,
गुमां सी हो चुकी थी कि... हम बहुत कुछ संभाल रहे,
दयार ए जात पे...फिर वही लकीरें,काविशे दिखती है।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'

(हयात -जीवन, तगामशी -भागदौड़, शोरिश -उपद्रव, काविश-
खोज, तलाश, जिज्ञासा)



 

कैसी अहमक़ हूँ

  कहने को तो ये जीवन कितना सादा है, कितना सहज, कितना खूबसूरत असबाब और हम न जाने किन चीजों में उलझे रहते है. हाल चाल जानने के लिए किसी ने पू...