Oct 7, 2022

इक कसक रह गई...


 

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जाते जाते इक कसक रह गई

 मैं पहुंची पर आप सो गई,

तंग हो गई है दामन की दुआएँ आजकल,

पर,जिंदगी की इम्तिहान बड़ी हो गई।

पम्मी सिंह 'तृप्ति'

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सब बोलते हैं तुम तो उषा की भोर हो,

भीगी हुई शाम हो चली हो,वही शोर हो।


इक साड़ी और बाली अब भी पास- पास है,

उनमें समायी खुशबू,वो शीरीं बहुत खास है।


अधिकतर धुंधली सी तस्वीरे उभर आती हैं,

और,मेरे तआरुफ़ की ख़ैर ओ ख़बर आती हैं।


राख कुरेद कर हासिल कुछ नहीं होता,

मेरी रौनकें,कहकशां के रास्ते इधर आती है।


सलीके से गर दिल की बात कहें तो,

शहर के भीड़ में भी तन्हाई की ख़बर आती है।

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

लेखकीय रूप

   अच्छा लगता है जब विशिष्ट समकालीन संदर्भ और तुर्शी के साथ जीवन,समाज के पहलूओं  को उजागर करतीं लेख छपती है। इस सफ़र का हिस्सा आप भी बनिए,प...