ग़ज़ल
आँखों से महव ए ख्वाब, भुलाया न जाएगा,
अश्कों को रोज- रोज, मिटाया न जाएगा।
हर पल लगें कुछ छूट रहा स्याह ख्वाब से,
दिल में अब शाद ख्याल, सजाया न जाएगा।
दौरे सफर में आज, कल की कुछ खबर नहीं,
बेकार की उम्मीद अब' निभाया न जाएगा।
भीगे हुए पल ओढ कर, धागे समेट लूँ,
जाते लम्हों को यूँ अब गवाया न जाएगा।
औरों की क्या हम बात करें क्यूँ, गुम खुद हुये
हर बात के किस्से अब, लिखाया न जाएगा।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
स०स०११७२७/२०२१
अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
Jul 17, 2022
धागे समेट लूँ..
Subscribe to:
Posts (Atom)
कैसी अहमक़ हूँ
कहने को तो ये जीवन कितना सादा है, कितना सहज, कितना खूबसूरत असबाब और हम न जाने किन चीजों में उलझे रहते है. हाल चाल जानने के लिए किसी ने पू...
-
डायरी 20/जून 24 इधर कई दिनों से बहुत गर्मी आज उमस हो रही। कभी कभार बादल पूरे आसमान को ढके हुए। 'सब ठीक है' के भीतर उम्मीद तो जताई...
-
पापा .. यूँ तो जहां में फ़रिश्तों की फ़ेहरिस्त है बड़ी , आपकी सरपरस्ती में संवर कर ही ख्वाहिशों को जमीं देती रही मग...
-
कहने को तो ये जीवन कितना सादा है, कितना सहज, कितना खूबसूरत असबाब और हम न जाने किन चीजों में उलझे रहते है. हाल चाल जानने के लिए किसी ने पू...