रंग रंगीला साजना, करें बहुत धमाल।
फगुआ गाय घड़ी- घड़ी,करके मुखड़ा लाल।।
करके मुखड़ा लाल, मरोड़ी मेरी कलाई।
कोमल सी नार मैं, छेड़ों न मेरी सलाई।
भीगी तृप्ति सोच रही, क्यूँ शिव बूटी माजना।
सांवली सूरत में , रंग रंगीला साजना।।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍
मुक्तक
हर रंग सार लूँ इस होली में
खुशरंग उतार लूँ इस होली में
सन्नाटों के महफिल गंवारा नहीं-
एक फाग गा लूँ इस होली में।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍