संदली हवाओं के रुख से आंचल लहराने लगें
पायलों के साज़ों से मंजिल गुनगुनाने लगें
फिर दफ़अतन हुआ यूँ कि-
उल्फतों में ख़सारा ढूंढ वो नज़रे बचाने लगें।
पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍
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सफ़्हो में ही कहीं न कहीं सिमटे रहेंगे
सफर के बाद भी यही कही बिखरे रहेंगे
सिफ़त ज़ीस्त का हो समझना-
हमारी लफ़्ज़ों की हरारत इनमें ही निखरे रहेंगे।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍
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